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________________ संयम की विधायक दृष्टि कहें कि संयोग है। परीक्षा कर लें। हो सकता है, संयोग न हो। और अगर संयोग नहीं है तो आपकी शक्ति का आपको अनुमान होना शुरू हो जाएगा। एक बार आपको खयाल में आ जाए आपकी शक्ति का सूत्र, तो आप उसको फिर विकसित कर सकते हैं। उसको प्रशिक्षित कर सकते हैं। संयम उसका प्रशिक्षण है। एक दिन आपने उपवास किया और आपको भोजन की बिलकुल याद न आए, उस दिन अपने को भुलाने की कोशिश में मत लगना जैसा उपवास करनेवाले करने लगते हैं। एक दिन उपवास किया तो आदमी मंदिर में जाकर बैठ जाता है। भजन कीर्तन, धुन में लगा रहता है। शास्त्र पढ़ता रहता है, साधु को सुनता रहता है। वह सब इसलिए कि भोजन की याद न आए। वह चूक रहा है। जिस दिन भोजन नहीं किया, उस दिन कुछ न करें, फिर खाली बैठ जाएं और देखें, अगर चौबीस घण्टे में आपको भोजन की याद न आए, तो उपवास आपके लिए मार्ग हो सकता है। तो आप महावीर जितने लम्बे उपवासों की दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं। वह आपका द्वार बन सकता है। अगर आपको भोजन-भोजन की ही याद आने लगे तो आप जानना कि वह आपका रास्ता नहीं है। आपके लिए वह ठीक नहीं होगा। किसी भी दिशा में-पच्चीस दिशाएं चौबीस घण्टे खुलती हैं। जो जानते हैं, वे तो कहते हैं हर क्षण हम चौराहे पर होते हैं, जहां से दिशाएं खुलती हैं-हर क्षण। अपनी दिशा को खोज लेना साधक के लिए बहुत जरूरी है, नहीं तो, वह भटक सकता है। और दूसरे को आरोपित मत करना, अपने को ही खोजना और अपने टाइप को खोजना, अपने ढांचे को, अपने व्यक्तित्व के रूप को। नहीं तो, भूल हो जाती है। महावीर को माननेवाले घर में पैदा हो गए हैं इसलिए आप महावीर के मार्ग पर जा सकेंगे, यह अनिवार्य नहीं है। कोई नहीं कह सकता कि आपके लिए मुहम्मद का मार्ग ठीक होगा। और कोई नहीं कह सकता कि कृष्ण का मार्ग ठीक नहीं होगा। जरूरी नहीं है कि आप कृष्ण को माननेवाले घर में पैदा हो गए हैं, इसलिए बांसुरी में आपको कोई रस आ जाए, यह जरूरी नहीं है। हो सकता है, महावीर आपके लिए सार्थक हों, जिनसे बांसुरी को कहीं भी जोड़ा नहीं जा सकता। अगर महावीर के पास बांसुरी रखो, तो, या तो महावीर को हटाना पड़े या बांसुरी को हटाना पड़े। उन दोनों का कहीं कोई तालमेल नहीं पड़ेगा। कृष्ण के हाथ से बांसुरी हटा लो तो कृष्ण नब्बे प्रतिशत हट गए, वहां कुछ बचे ही नहीं। कृष्ण के हाथ में बासुंरी न हो तो कृष्ण को पहचानना मुश्किल है। अगर बांसुरी अकेली रखी हो तो कृष्ण का खयाल आ भी सकता है। व्यक्तित्व के टाइप हैं। और अभी, जैसा कि हमने कभी इस मुल्क में चार वर्णों को बांटा था, यह बहुत मजे की बात है कि वे चार वर्ण हमारे चार टाइप थे, जो मूल आदमी के चार रूप हो सकते हैं। / कभी-कभी चकित करने वाली घटनाएं घटती हैं। अभी रूस के वैज्ञानिक फिर आदमी को इलैक्ट्रिसिटी के आधार पर चार हिस्सों में बांटना शुरू किए हैं। वे कहते हैं-फोर टाइप्स। आधार उनका है कि व्यक्ति के शरीर की विद्युत का जो प्रवाह है, वह उसके टाइप को बताता है और वह विद्युत का प्रवाह है जो शरीर का, वह सब का अलग-अलग है। मैं मानता हूं कि महावीर का वह विद्युत का प्रवाह पाजिटिव था। इसलिए वे किसी भी सक्रिय साधना में कूद सके। बुद्ध का वह इलैक्ट्रिक प्रभाव निगेटिव था इसलिए वे किसी सक्रिय साधना से कुछ भी न पा सके। उन्हें एक दिन बिलकुल ही निष्क्रिय औ हो जाना पड़ा। वहीं से उनकी उपलब्धि का द्वार खुला। वह व्यक्तित्व का भेद है, यह सिद्धांत का भेद नहीं है। ___ अब तक मनुष्य जाति बहुत उपद्रव में रही है क्योंकि हम व्यक्तित्व के भेद को सिद्धांतों का भेद मानकर व्यर्थ के विवादों में पड़े रहे हैं। अपने व्यक्तित्व को खोज लें। अपनी विशिष्ट इन्द्रिय को खोज लें। अपनी क्षमता का थोड़ा-सा आंकलन कर लें और फिर आप संयम की दिशा में गति करना आसान...रोज-रोज आसान पाएंगे। लेकिन अगर आपने अपनी क्षमता को बिना आंके किसी 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340007
Book TitleMahavir Vani Lecture 07 Sanyam ki Vidhayak Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size79 MB
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