SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर ने कहा है-जिसे पाना हो उसे देखना शुरू करना चाहिए। क्योंकि हम उसे ही पा सकते हैं जिसे हम देखने में समर्थ हो जाएं। जिसे हमने देखा नहीं, उसे पाने का भी कोई उपाय नहीं। जिसे खोजना हो, उसकी भावना करनी प्रारंभ कर लेनी चाहिए। क्योंकि इस जगत में हमें वही मिलता है, जो मिलने के भी पहले, जिसके लिए हम अपने हृदय में जगह बना लेते हैं। अतिथि घर आता हो तो हम इंतजाम कर लेते हैं उसके स्वागत का। अरिहंत को निर्मित करना हो स्वयं में, सिद्ध को पाना हो कभी, किसी क्षण ना हो तो उसे देखना, उसकी भावना करनी, उसकी आकांक्षा और अभीप्सा की तरफ चरण उठाने शुरू करने जरूरी हैं। महावीर से ढाई हजार साल पहले चीन में एक कहावत प्रचलित थी। और वह कहावत थी - लाओत्से के द्वारा कही गयी और बाद में संग्रहीत की गयी चिंतन की धारा का पूरा का पूरा सार - वह कहावत थी- 'द सुपीरियर फिजिशियन क्योर्स द इलनेस बिफोर इट इज मैनिफैस्टेड' - जो श्रेष्ठ चिकित्सक है वह बीमारी के प्रगट होने के पहले ही उसे ठीक कर देता है। 'द इनफीरियर फिजिशियन ओनली केयर्स फार द इलनेस व्हिच ही वाज नाट एबल टु प्रिवेंट' - और, जो साधारण चिकित्सक है वह केवल बीमारी को दूर करने में थोड़ी बहुत सहायता पहुंचाता है, जिसे वह रोकने में समर्थ नहीं था। __ हैरान होंगे जानकर आप यह बात कि महावीर से ढाई हजार साल पहले, आज से पांच हजार साल पहले चीन में चिकित्सक को बीमारी के ठीक करने के लिए कोई पुरस्कार नहीं दिया जाता था। उल्टा ही रिवाज था, या हम समझें कि हम जो कर रहे हैं वह उल्टा है। चिकित्सक को पैसे दिये जाते थे इसलिए कि वह किसी को बीमार न पड़ने दे। और अगर कभी कोई बीमार पड़ जाता तो चिकित्सक को उल्टे उसे पैसे चुकाने पड़ते थे। तो हर व्यक्ति नियमित अपने चिकित्सक को पैसे देता था ताकि वह बीमार न पड़े। और बीमार पड़ जाए तो चिकित्सक को उसे ठीक भी करना पड़ता और पैसे भी देने पड़ते। जब तक वह ठीक न हो जाता, तब तक बीमार को फीस मिलती चिकित्सक के द्वारा। यह जो चिकित्सा की पद्धति चीन में थी उसका नाम है - ऐक्युपंक्चर। इस चिकित्सा की पद्धति को नया वैज्ञानिक समर्थन मिलना शुरू हुआ है। रूस में वे इस पर बड़े प्रयोग कर रहे हैं और उनकी दृष्टि है कि इस सदी के पूरे होते-होते रूस में चिकित्सक को बीमार को बीमार न पड़ने देने की तनख्वाह देनी शुरू कर दी जाएगी। और जब भी कोई बीमार पड़ेगा तो चिकित्सक जिम्मेवार और अपराधी होगा। ऐक्युपंक्चर मानता है कि शरीर में खून ही नहीं बहता, विद्युत ही नहीं बहती - एक और तीसरा प्रवाह है, प्राण है - ऊर्जा का, एलन 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340002
Book TitleMahavir Vani Lecture 02 Mangal va Lokottam ki Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy