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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 वाइटल का - वह प्रवाह भी शरीर में बहता है। सात सौ स्थानों पर शरीर के अलग-अलग वह प्रवाह है, चमड़ी को स्पर्श करता है। इसलिए ऐक्युपंक्चर में चमड़ी पर जहां-जहां प्रवाह अव्यवस्थित हो गया है, वहीं सुई चोभकर प्रवाह को संतुलित करने की कोशिश की जाती है। बीमारी के आने के छह महीने पहले उस प्रवाह में असंतुलन शुरू हो जाता है। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि नाड़ी की जानकारी भी वस्तुतः खून के प्रवाह की जानकारी नहीं है। नाड़ी के द्वारा भी उसी जीवन-प्रवाह को समझने की कोशिश की जाती रही है। और छह महीने पहले नाड़ी अस्त-व्यस्त होनी शुरू हो जाती है - बीमारी के आने के छह महीने पहले। ___ हमारे भीतर जो प्राण-शरीर है उसमें पहले बीज रूप में चीजें पैदा होती हैं और फिर वृक्ष रूप में हमारे भौतिक शरीर तक फैल जाती हैं। चाहे शुभ को जन्म देना हो, चाहे अशुभ को। चाहे स्वास्थ्य को जन्म देना हो, चाहे बीमारी को। सबसे पहले प्राण शरीर में बीज आरोपित करने होते हैं। यह जो मंगल की स्तुति है कि अरिहंत मंगल हैं, यह प्राण-शरीर में बीज डालने का उपाय है। क्योंकि जो मंगल है उसकी कामना स्वाभाविक हो जाती है। हम वही चाहते हैं जो मंगल है। जो अमंगल है वह हम नहीं चाहते। इसमें चाह की तो बात ही नहीं की गयी है, सिर्फ मंगल का भाव है। अरिहंत मंगल हैं, सिद्ध मंगल हैं, साहू मंगल हैं। केवलीपन्नत्तो धम्मो मंगलं - वह जिन्होंने स्वयं को जाना और पाया, उनके द्वारा विरूपित धर्म मंगल है- सिर्फ मंगल का भाव। __यह जानकर हैरानी होगी कि मन का नियम है, जो भी मंगल है, ऐसा भाव गहन हो जाए तो उसकी आकांक्षा शुरू हो जाती है। आकांक्षा को पैदा नहीं करना पड़ता। मंगल की धारणा को पैदा करना पड़ता है। आकांक्षा मंगल की धारणा के पीछे छाया की भांति चली आती है। ___ धारणा पतंजलि योग के आठ अंगों में कीमती अंग है जहां से अंतर्यात्रा शुरू होती है-धारणा, ध्यान, समाधि- छठवां सूत्र है धारणा, सातवां ध्यान, आठवां समाधि। यह जो मंगल की धारणा है, यह पतंजलि योग-सूत्र का छठवां सूत्र है, और महावीर के योग-सूत्र का पहला। क्योंकि महावीर का मानना यह है कि धारणा से सब शुरू हो जाता है। धारणा जैसे ही हमारे भीतर गहन होती है, हमारी चेतना रूपांतरित होती है। न केवल हमारी, हमारे पड़ोस में जो बैठा है उसकी भी। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि आप अपनी ही धारणाओं से प्रभावित नहीं होते, आपके निकट जो धारणाओं के प्रवाह बहते हैं उनसे भी प्रभावित होते हैं। इसलिए महावीर ने कहा है - अज्ञानी से दूर रहना मंगल है, ज्ञानी के निकट रहना मंगल है। चेतना जिसकी रुग्ण है उससे दूर रहना मंगल है। चेतना जिसकी स्वस्थ है उसके निकट, सान्निध्य में रहना मंगल है। सत्संग का इतना ही अर्थ है कि जहां शुभ धारणाएं हों, उस मिल्यू में, उस वातावरण में रहना मंगल है। ___ रूस के एक विचारक, जो ऐक्युपंक्चर पर काम कर रहे हैं - डा. सिरोव, उन्होंने यांत्रिक आविष्कार किये हैं जिनसे पड़ोसी की धारणा आपको कब प्रभावित करती है और कैसे प्रभावित करती है, उसकी जांच की जा सकती है। आप पूरे समय पड़ोस की धारणाओं से इम्पोज किये जा रहे हैं। आपको पता ही नहीं है कि आपको जो क्रोध आया है, जरूरी नहीं है कि आपका ही हो। वह आपके पड़ोसी का भी हो सकता है। भीड़ में बहुत मौकों पर आपको खयाल नहीं है— भीड़ में एक आदमी जम्हाई लेता है और दस आदमी, उसी क्षण, अलग-अलग कोनों में बैठे हुए जम्हाई लेने शुरू कर देते हैं। सिरोव का कहना है कि वह धारणा एक के मन में जो पैदा हुई उसके वर्तल आसपास चले गये और दसरों को भी उसने पकड लिया। अब इसके लिए उस हैं, जो बताते हैं कि धारणा आपको कब पकड़ती है और कब आप में प्रवेश कर जाती है। अपनी धारणा से तो व्यक्ति का प्राण-शरीर प्रभावित होता ही है, दूसरे की धारणा से भी प्रभावित होता है। कुछ घटनाएं इस संबंध में आपको कहूं तो बहुत आसान होगा। 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.340002
Book TitleMahavir Vani Lecture 02 Mangal va Lokottam ki Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size92 MB
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