________________ मंगल व लोकोत्तम की भावना रहा है। वह कह रहा है- यह तो स्वाभाविक है. यह तो बिलकल स्वाभाविक है, यह तो होगा ही। अगर आज पश्चिम में जीवन ऐसे नीचे तल पर सरक रहा है- चल रहा है कहना ठीक नहीं, सरक रहा है, जैसे सांप सरकता है- तो उसका बड़े से बड़ा जिम्मा पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों को है क्योंकि वह निकृष्ट को कहता है कि यही स्वभाव है। और कठिनाई यह है कि निकृष्ट को स्वभाव मान लेना हमें आसान है, क्योंकि हम परिचित हैं, और वह दलील ठीक लगती है। - जब महावीर कहते हैं, 'अरिहंता लोगुत्तमा', तो समझ में नहीं पड़ता कि ऐसे लोग होते हैं। अरिहंत को हम जानते नहीं, सिद्ध को हम जानते नहीं। कौन हैं ये? हमारे भीतर तो हमने सिद्ध जैसा कभी कोई क्षण अनुभव नहीं किया; अरिहंत जैसी हमने कभी कोई लहर नहीं जानी; साधु जैसा हमने कभी कोई भाव नहीं जाना; केवली-प्ररूपित धर्म में हमने कभी प्रवेश नहीं किया। क्या हवा की बातें हैं? तो अगर हम मान भी लें तो मजबूरी में मानते हैं और उस मजबूरी का नाम हमने धर्म रखा हुआ है। किसी घर में पैदा हो गये, जैन, मजबूरी है, आपका कोई कृत्य नहीं है। पर्युषण है तो मजबूरी है। तो आप जाते हैं मंदिर में, नमस्कार करते हैं। साधु को नमस्कार करते हैं, उपवास कर लेते हैं, व्रत कर लेते हैं- मजबूरी है। किसी का कसूर नहीं, आप पैदा हो गये जैन घर में। इसमें किसी का कोई हाथ तो है नहीं। खोपड़ी में बचपन से सुनाया जा रहा है वह भर गया है, उसको निपटा लेते हैं। बाकी कहीं स्फुरणा नहीं है उसमें। कहीं कोई ऐसा सहज भाव नहीं है। ___ क्या आपने खयाल किया है मंदिर जाते वक्त आपके पैर और सिनेमागृह में जाते वक्त आपके पैरों की गति में बुनियादी भेद होता है— गुणात्मक, क्वालिटेटिव / मंदिर जैसे आप घसीटे जाते हैं, सिनेमागृह जैसे आप जाते हैं। मंदिर जैसे एक मजबूरी है, एक काम है। प्रफुल्लता नहीं है चरण में, नृत्य नहीं है चरण में जाते समय। किसी तरह पूरा कर देना है - लेकिन निकृष्ट जीवन है, परा - नहीं, कर देना है। __ सुना है मैंने मुल्ला नसरुद्दीन जिस दिन मरा, उस दिन पुरोहित उसे परमात्मा की प्रार्थना कराने आये और कहा कि मुल्ला! पश्चात्ताप करो, रिपेन्ट। पश्चात्ताप करो उन पापों का, जो तुमने किये हैं। मुल्ला ने आंख खोली और कहा कि मैं दूसरा ही पश्चात्ताप कर रहा हूं। जो पाप मैं नहीं कर पाया, उनका पश्चात्ताप कर रहा हूं। अब मर रहा हूं, और कुछ पाप करने का मेरा मन था, वे नहीं कर पाया। वह पुरोहित फिर भी नहीं समझ पाया, क्योंकि पुरोहितों से कम समझदार आदमी आज जमीन पर दूसरे नहीं हैं। उसने कहामुल्ला, यह क्या तुम कहते हो? अगर तुम्हें दुबारा जन्म मिले तो क्या तुम वही पाप करोगे? वैसा ही जियोगे, जैसा अभी जिये? मुल्ला ने कहा कि नहीं, बहुत फर्क करूंगा। मैंने इस जिंदगी में पाप बड़ी देर से शुरू किये, अगली जिंदगी में जरा जल्दी शुरू कर दूंगा। ___ यह मुल्ला हम सब मनुष्यों के बाबत खबर दे रहा है। यह व्यंग्य है, यह आदमी पूरा व्यंग्य है हम सब पर। यह हमारी मनोदशा है। मरते वक्त हमें भी पश्चात्ताप होगा। पश्चात्ताप होगा उन औरतों का जो नहीं मिलीं। पश्चात्ताप होगा उस धन का जो नहीं पाया। पश्चात्ताप होगा उन पदों का जो चूक गये। पश्चात्ताप होगा उस सबका जो निकृष्ट था, जो पाने योग्य ही नहीं था। लेकिन क्या मरते वक्त पश्चात्ताप होगा कि अरिहंत न मिले? सिद्ध न मिले? केवली-प्ररूपित धर्म में प्रवेश न मिला? ___ नहीं, हो सकता है नमोकार आपके आसपास पढ़ा जा रहा होगा, लेकिन आपके भीतर उसका कोई प्रवेश नहीं हो पाएगा। क्योंकि जिन्होंने जीवनभर उसके प्रवेश की तैयारी नहीं की, वे अगर सोचते हों कि क्षणभर में उसका प्रवेश हो जाएगा तो वे नासमझ हैं। जिन्होंने जीवनभर उस मेहमान के आने के लिए इंतजाम नहीं किया, वे सोचते हैं- अचानक वह मेहमान भीतर आ जाएगा तो वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org