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________________ कि समाज शांति का घर बने तो उसमें न्याय द्वारा संतुलन स्थापित करें क्योंकि यदि कोई किसी का हक मारता है तो मानो वह प्रकृति से विद्रोह करता है- यहां तक कि बड़े बड़े अत्याचार तो दूर रहे यदि कोई नाप तोल के अंदर मामूली डंडी भी मारता है तो मानो वह कायनात की व्यवस्था से विद्रोह करता है और इस संसार की व्यवस्था में बाधा डालने का प्रयास करता है। कुरआन मजीद के अनुसार शुऐब की कौम (मदयन) केवल इसी वजह से विनष्ट कर दी गई कि वह माप-तौल में बेइमानी करती थी। xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx अराजकतावाद : सामान्यतः, अराजकता का अर्थ अव्यवस्था तथा अशांति से लिया जाता है। लेकिन, एक राजनीतिक अवधारणा के रूप में अराजकता का अर्थ है राजसत्ता की अनुपस्थिति । इसे किसी भी प्रकार की सत्ता की अनुपस्थिति भी कहा जा सकता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में अराजकतावाद सत्ता की उपस्थिति को व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए आघात मानता है तथा उसके स्वतंत्र विकास के लिए यह आवश्यक मानता है कि वह किसी भी प्रकार की सत्ता के दबाव से मुक्त हो। अराजकतावाद प्रकारांतर से एक शोषण-विहिन व्यवस्था की कल्पना करता है, जिसमें सत्ता या बलप्रयोग का कोई स्थान हो। अराजकतावादी विचारक केवल राज्य संस्था के अभाव पर ही नहीं संपत्ति की संस्था के अभाव पर भी बल देते हैं। प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी प्रूदों (Proudhon) की प्रसिद्ध सूक्ति है : संपत्ति चोरी है। प्रूदों का मानना है कि अपने आवास तथा बुनियादी आवश्यकताओं की स्वस्थ पूर्ति से अधिक संपत्ति रखना एक अपराध है। इसे जैन-दर्शन के अपरिग्रह व्रत के संदर्भ में व्याख्यायित किया जा सकता है। प्रूदों ने बाजार-व्यवस्था को भी शोषण और बल पर आधारित मानते हुए परस्परवाद के आधार पर आर्थिक प्रक्रिया को विकसित करने की बात कही, जिसमें स्वशासी उत्पादक आपस में न्यायसंगत विनिमय कर सकें। प्रूदों इसीलिए जमींदारी, पूंजीवादी और राष्ट्रवाद को असंगत ठहराता है। प्रसिद्ध अराजकतावादी विचारकों में प्रूदों के अतिरिक्त गॉडविन, क्रोपाटकिन, कार्लमार्क्स, एंगेल्स, बाकुनिन, जार्ज सारेल, तोलस्तोय और महात्मा गांधी का उल्लेख किया जाता है। अमरीकी विचारक नॉजिक (Nozick) को अर्ध-अराजकतावादी विचारक माना जाता है। मिखाइल बाकुनिन भी एक साम्यवादी विचारक था। उसकी मान्यता है कि मनुष्य भय के कारण सत्ता के सम्मुख झुकता है-चाहे वह धर्म (ईश्वर) की सत्ता हो या राज्य की। प्रत्यक्षवादी विज्ञान की सहायता से धर्म का भय दूर किया जा सकता है, और विद्रोह द्वारा राज्य के भय का अंत किया जा सकता है। वह राज्य का अंत होने पर प्रूदों के विचारों के अनुकूल संघीय व्यवस्था का सुझाव देता है जो छोटे-छोटे पड़ौसी समूहों से बनी होगी। बाकुनिन भी निजी संपत्ति की अवधारणा को नहीं स्वीकार करता तथा उत्पादन के साधनों को सामूहिक स्वामित्व में रखना चाहता है। अराजकतावादी विचारकों में रूसी विचारक प्रिंस क्रोपाटकिन का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनके पारस्परिक सहायता (Mutual Aid) की अवधारणा ने मानव-विकास की नई दृष्टि विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाह किया है। क्रोपाटकिन का मानना है कि पारस्परिक सहयोग या सामाजिकता एक अंतर्जात प्रवृत्ति है और विकास की प्रक्रिया संघर्ष के बजाय सहयोग पर आधारित है। क्रोपाटकिन मानते हैं कि उपयुक्त शिक्षा और सहयोगमूलक अर्थव्यवस्था द्वारा मनुष्य में इस पारस्परिक सहयोगी की प्रवृत्ति को और अधिक विकसित किया जा सकने पर राज्य स्वतः ही निर्बल होकर समाप्त हो जाएगा-क्योंकि राज्य का आधार बल है, पारस्परिक सहयोग नहीं। क्रोपाटकिन की व्यवस्था में निजी संपत्ति का कोई स्थान नहीं है, इसलिए विषमता का भी नहीं। अराजकतावादी विचारकों में तोलस्तोय का महत्त्व इसलिए है कि वह व्यक्ति के नैतिक जीवन पर अधिक जोर देते हैं। वह मानते हैं कि ईश्वर का राज्य हमारे भीतर है, इसलिए उसे किसी बाहरी राज्य की आवश्यकता ही नहीं है। यदि सभी नैतिक नियमों का पालन करते रहें तो राज्य की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती। तोलस्तोय बल पर आधारित राज्य को अनैतिक मानते हैं क्योंकि वह सेना के बल पर बुराई का प्रतिकार करना चाहता है, जबकि तोलस्तोय बुराई के भी अप्रतिकार (Non-resistance) की बात करते हैं। वह भी निजी संपत्ति की अवधारणा को विषमताजनक बताते हुए खारिज कर देते हैं। अराजकतावादी विचारकों में महात्मा गांधी का स्थान बहुत विशिष्ट है क्योंकि वह व्यक्ति और व्यवस्था दोनों को सत्याग्रह की प्रक्रिया से गुजारकर जिस स्वराज्य की कल्पना करते हैं, उसमें प्रत्येक व्यक्ति न केवल स्वतंत्र और आत्मानुशासित है, बल्कि अन्य के प्रति उत्तरदायी भी। सत्याग्रह का तात्पर्य अन्य के प्रति अपने नैतिक कर्तव्य का आग्रह भी है। वह आर्थिक-राजनीतिक विकेंद्रीकरण तथा ग्राम-स्वराज्य की प्रक्रिया के माध्यम से एक शोषण-विहिन समाज का स्वप्न देखते हैं। महात्मा गांधी का राजनीतिक आदर्श शक्ति-केंद्र के रूप में राज्य का लोप तथा स्वायत्त ग्राम-गणतंत्रों की संघीय व्यवस्था है, जिसमें कोई किसी की प्रभुसत्ता के दबाव में नहीं है। इसीलिए वह पिरामिडाकार राजनीतिक संरचना की जगह सामुद्रिक वलय के रूप वाली राजनीतिक संरचना का आग्रह करते हैं। उत्पादन के बड़े साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व के स्थान पर वह ट्रस्टीशिप की अवधारणा का प्रतिपादन करते हैं। इस प्रकार, अराजकतावाद एक ऐसी अवधारणा है जो मनुष्य की उत्तम प्रकृति में विश्वास रखती तथा सत्ता के सभी रूपोंराज्य, संपत्ति और धर्म-संस्थान को सही मानव-विकास में बाधा मानती है। अराजकतावादी विचारक राज्य को ही अस्वीकार नहीं करते; वे उत्पादन के साधनों पर वैयक्तिक स्वामित्व को आर्थिक विषमता तथा राज्य की दमन-शक्ति के उपयोग के लिए भी जिम्मेदार
SR No.269089
Book TitleAparigraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD R Mehta
PublisherD R Mehta
Publication Year
Total Pages16
LanguageEnglish
ClassificationArticle, Five Geat Vows, & C000
File Size191 KB
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