SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर निर्भर हो गई है। खेती, पेड़-पौधे, जो कि हमें स्थायी आधार देते रहे हैं, उन्हें हमने, डीजल, यंत्र, रासायनिक खाद आदि का गुलाम बना दिया है। जल के दोहन एवं दुरुपयोग ने प्रकृति को, धरती एवं पर्यावरण को प्यासा बना दिया है। सार रुप में कहें तो आज का अर्थशास्त्र-अर्थ व्यवहार क्षणभंगुर संसाधनों पर निर्भर है। इस परनिर्भर तथा परिग्रह से पूर्ण अर्थव्यवस्था में स्थायी समाज व्यवस्था की कल्पना कैसे की जा सकती है जिसमें स्वार्थी मूल्यों की प्रधानता हो? यह चिंतन एवं चिंता का विषय है जो प्रो० जे०सी० कुमारप्पा की सोच की गहराई में जाने के लिए उत्साहित करता है। प्रो० कुमारप्पा का मानना है कि कुदरत (प्रकृति) की व्यवस्था कायम रखने या बिगाड़ने की ताकत अकेले मनुष्य में है—अन्य प्राणी तो कुदरत की व्यवस्था के अनुरुप चलते ही हैं। तात्पर्य यह है कि अन्य प्राणी स्थायी समाज व्यवस्था के पोषक हैं। कुमारप्पा ने सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज के लिए अपरिग्रही या स्थायी व्यवस्था को आवश्यक माना है। xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ग्रेग, रिचर्ड बी० : (1885-1974 ई०) रिचर्ड बी० ग्रेग पहले अमेरिकी समाज-दार्शनिक चिंतक थे, जिन्होंने स्वैच्छिक सादगी और अहिंसक प्रतिरोध के क्षेत्र में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया था। मार्टिन लूथर किंग (जूनियर), बेयार्ड रस्किन, अल्डॉस हक्सले से प्रभावित ग्रेग का जन्म 1885 ई० में कोलोरेंडो में हुआ था। 1907 ई० में हार्वर्ड से स्नातक कर 1911 ई० में वकालत की डिग्री प्राप्त की। हार्वर्ड के एक प्रशिक्षित वकील के रूप में तीन वर्ष तक कार्य करके वह व्यापारिक संगठनों से जुड़ गए। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ग्रेग ने रेलमार्ग कर्मचारियों के लिए प्रचार और मध्यस्थता का कार्य किया। 1920 ई० के प्रारंभ में उन्होंने गांधी के कार्यों के बारे में एक आलेख पढ़ा, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने गांधी से मिलने और भारत की संस्कृति को जानने के लिए भारत जाने का निर्णय किया। भारत में अपने चार साल के प्रवास में ग्रेग ने भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया। ग्रेग का अहिंसा एवं शांति संबंधी चिंतन उनके सुदृढ़ साहित्य में उपलब्ध होता है। अहिंसक प्रतिरोध, स्वैच्छिक सादगी का महत्त्व आदि उनके लेखन के केंद्र बिंदु थे, किंतु इसके अतिरिक्त भी उन्होंने अहिंसा, शांति एवं गांधी विचार के संबंध में भी अपना चिंतन प्रस्तुत किया। ग्रेग द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें हैं —पॉवर ऑफ नान-वायलेंस, ए कंपास फोर सिविलिनेशन, इकोनोमिक्स ऑफ खद्दर, वैल्यू ऑफ वालंटरी सिंपलिसिटी, गांधीज सत्याग्रह आदि। ग्रेग ने साधारण तरीके से जीवन जीने की महत्ता पर एक दार्शनिक चिंतन प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने वैल्यू ऑफ वालंटरी सिंपलिसिटी अर्थात् स्वैच्छिक सादगी का महत्त्व नाम दिया। विश्व के अनेक धर्म-दर्शनों में सादगीपूर्ण जीवन की महत्ता को स्पष्ट किया गया है और रिचर्ड बी० ग्रेग उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सादगीपूर्ण जीवन जीने की वकालत करते हैं। सादगी का तात्पर्य है—आंतरिक रूप से जीवन के उद्देश्य का एकाकी होना एवं ईमानदारी व निष्ठा की भावना होना तथा बाह्य रूप से अव्यवस्थाओं से प्रभावित न होना। तात्पर्य यह है कि सादगी व्यक्ति की इच्छा एवं शक्तियों का आदेशित व निर्देशित रूप है। ग्रेग के अनुसार सादगीपूर्ण जीवन जीना एक व्यक्ति के निवास स्थान की जलवायु, उसके चरित्र, रीति-रिवाज और संस्कृति पर निर्भर करता है। आधुनिक भोगवादी युग की आलोचना करते हुए ग्रेग कहते हैं—वर्तमान के वैज्ञानिक-तकनीकी अन्वेषणों ने जहां एक ओर चमत्कारिक उपलब्धियां अर्जित की है वहीं, दूसरी ओर, आज भी कई देशों में आधारभूत सुविधाओं से वंचित लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। विश्व के सर्वाधिक संपन्न राष्ट्र अमेरिका की जनसंख्या का एक बड़ा भाग पानी और बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं से वंचित है। प्रौद्योगिकी के विकास ने संपूर्ण विश्व में बेरोजगारी को बढ़ाया है, नैतिक समस्याओं को जन्म दिया है। आधुनिक जीवन में गुणात्मक तत्त्व गौण होते जा रहे हैं और मात्रात्मक संबंधों की प्रधानता बढ़ती जा रही है, जबकि मनुष्य के सामाजिक जीवन का सार गुणात्मक संबंधों में हैं। सादगीपूर्ण जीवन इस लक्ष्य को पाने का एक उचित साधन ग्रेग ने सादगीपूर्ण जीवन का आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, व्यक्तित्व, स्वास्थ्य आदि कई आधारों पर महत्त्व स्पष्ट किया है। आर्थिक आधार पर ग्रेग सादगीपूर्ण जीवन की विशिष्टता को बतलाते हुए कहते है कि अर्थशास्त्र के तीन भाग हैं— उत्पादन, वितरण और उपभोग। सादगीपूर्ण जीवन उपभोग को प्रभावित कर एक मानक तय करता है। आधुनिक अर्थव्यवस्था के मुख्य दोषों-लालच और प्रतिस्पर्धा का समाधान संयमित जीवन शैली ही कर सकती है। समाज में व्याप्त शोषण को रोकने का प्रथम उपाय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति सादगीपूर्ण जीवन जिए। विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन पूंजी और श्रम को समाजोत्पादक वस्तुओं के उत्पादन से विमुख कर देते हैं और उनका दुरुपयोग होने लगता है। यह प्रवृत्ति आधारभूत वस्तुओं की मांग को बढ़ा देती है और मजदूरी की दरें कम हो जाती है । फलस्वरूप, मजदूर का शोषण होता है और उसे निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। अतः, जो व्यक्ति वर्तमान आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं, उनके लिए आवश्यक है कि वे स्वयं सादगीपूर्ण जीवन जीकर इच्छित दिशा की ओर अपने जीवन को संचालित करें। सादगी के राजनैतिक आधार को स्पष्ट करते हुए ग्रेग कहते हैं—गांधी, लेनिन जैसे कई राजनैतिक व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करके अपना अमिट राजनैतिक प्रभाव छोड़ा। उनकी सादगी उनकी राजनैतिक शक्ति का महत्त्वपूर्ण अंग थी।लंबे समय तक सादगी का जीवन जीकर एक नेता अपनी निःस्वार्थता और ईमानदारी को दर्शाकर जनसाधारण में विश्वास अर्जित कर लेता है, जो उसकी राजनैतिक शक्ति का मुख्य आधार बनता है। इस आधार पर अर्जित राजनैतिक शक्ति मजबूत और स्थाई होती है। अतएव, यदि सभी शासक-वर्ग सदैव सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करें (10)
SR No.269089
Book TitleAparigraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD R Mehta
PublisherD R Mehta
Publication Year
Total Pages16
LanguageEnglish
ClassificationArticle, Five Geat Vows, & C000
File Size191 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy