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________________ 392 Padmanabh S. Jaini Jambu-jyoti दोहरा मुकति कामिनी को रमै न कामिनि xxxxxx होइ(?) परगट ही देख // 53 // समयविरोधी देखीयै परगट चित न विचार / मल्लिनाथ जिन को कहै मल्लिकुमारि नारि // 54 // अडिल्ल-स्वर्गभूमि पाताललोक मै देखियो, नारी नायक सुनौ कहूं न विसेषियै / जगतबंधु अरिहंत देवपद को धरै, पर अधीन जो हीन निंद पद आचरै // 55 // चौपड़ जौं नारी कौं जिनपद मानौ, तौ ताकी प्रतिमा करि जानौ / पुरुष आकार एक ही बंदौ, नारीरूप क्यों न अभिनंदौ / / 56 // जौ नितंबिनी बन सोहै, कुचरूपादिक मंडित हो है। तौ लज्जा करि कामिनी रूपी, क्यौं करि जिनवर होहि अनूखी // 57 // दोहरा... जाके दरसत परसत रागादिक मिटि जाइ / तिस नररूपी ईस कौं वंदौ सीस नवाइ // 58 // चौपइ कहै युगल हरिखेत निवासी, काहू देव हौँ सविलासी / पूरब बैर जानि दुख दीनौ, अवगाहन करि छायौ कीनौ // 59 // सोइ भरतखंड फिरि आन्यौ, मथुरानगर राज दे मान्यौ। पापी करि तिनि मांस खवायौ, नरक नगर के पंथ चलायौ // 60 / / तिसके कुलि हरिवंस बखाने, सत्यारथ उपदेस न माने / जुगल सर्व ही सुरगतिगामी, नरक न सेवहि तिरियु(?) परिणामी // 61 / / दोइ कोस की तिसकी काया, सुर क्यौं करि लघु रूप बनाया। जौ तुम ईसहि अछेरा मानौ, तौ भी नाहि बनै मनि आनौ // 62 / / काल अनंत अनंत गए तै, एक एक ही युगल गहे / / सब हरिखेत भूमि का खाली, व्हैकै मिटै जुगल परनाली // 63 / / दोहरा--- सब गणती के युगल है घटे बढे नहीं कोइ / मरणकाल ही जुगल कैं आइ युगलीया होइ // 64 // राखत चउदह उपकरण मुनि की नाही दोष / परिग्रहत्यागदसा विषै करिहि परिग्रह पोष // 65 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.269051
Book TitleHemaraj Pandes Caurasi Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanabh S Jaini
PublisherZ_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2
Publication Year2004
Total Pages5
LanguageEnglish
ClassificationArticle & Literature
File Size381 KB
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