________________ Hemaraj Pande's Caurasi Bol 393 जहिं परमाणु समान नहि परिग्रह ग्रह को संच / तहां कही क्यों करि बनै वस्त्रादिक परपंच // 66 // सवैया इकतीसा काल पाय मैले होइ आसा होइ धोवन की धोयें नासै संसय में और भविस तारे(?) है। नास भये मांगने को त्रास होइ नासने के डरतें सुध्यान विषै थिरता विसारे है। देह दुति मंडन है ब्रह्मचर्य खंडन है जिनलिंग लंडन है तातै पट डारै है। संवर धरनहार अंबर से अविकार होइ को निरंबर दिगंबर ही धारै है // 67 // दोहरा समयादिक परजाय को काल हरषं(?) समुझाहि / काल अणू जाणै नही ते असंख्य जगमाहि / / 68|| छप्पय. काल अणू जौ नाहि समय तौ होइ कहो ते सुथिर / वस्तुविन नांहि नास उतपत्ति तहातै असन(?) जनम // जै होइहो उपर(?) - श्रम जगत में वृद्धि होउ परधान(?) / और क्षणभंगुरमत मै नहि सधै वस्तु सीमा चित्र(?) प्रल[य] जनम नास थिरभाव बिना थिरता निमित्त / समयादि की काल अणू जगि कहहि जिन // 69 // सवैया इकतीसा मानै जो मुनिसुव्रत को गनधर घौरौ भयौ काहू काज के निमित्त मांस मुनि गहे है। घरि घरि विहरि अन्न मांगि मांगि कहै मुनि थान आनि भोजन को लहै है।' निजमतनिंदक को ठौर मारै पाप नही निर्दय सुभाव धरि काहू की न सहै है / साची वात झूठी कहै वस्तु को न भेद लहै हठ रीति गहै रहै मिथ्या वात कहे है / / 70 / / भरत नै ब्राह्मी बहनि कहै नारी कोनी महासती दोष लाइ भववास चहै है। ग्रहवास वसतै ही केवली भरत भयौ आरसीकै मंदिर में मानि निरवहे है / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org