SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Hemaraj Pande's Caurasi Bol 391 सवैया इकतीसा अरिहंत पद वंदि वंदक सरूप मेरौ, ऐसे भाव परमाद गुनताइ बहे है। सातमी धरातै आगै आतमीक रस जागै, तहां वंद्यवंदक विभाव नाही रहे है। साधकदसा मै जहां बाधक है ऐसे भाव, तहां जिन जिन वंदै मंद कैसै कहै है। पूरन सरूपधारी वीतराग अविकारी, वंदनीक एकै मांनी ग्यानी सरदहै है // 47|| सवैया तेईसा केवलग्यानविषै जिनवीर कहे अनजान अचानक छींक्यौ। सो न बनै तब छींक उठै जब वात कफामय पित्त जीकौ // धातु विवर्जित निर्मल इ(ई) स सरीरविषै नही रोग रती को। छीक कलंक अडंकित अंकित सुद्ध दसा तहि दोष नहीं कौ // 48! अडिल तिरदंडी तापसी कुलंगी भेस रचै आवत सुनि जिन वीरनाथ उपदेसयौ(?) / गौतम स्वामी गधर व्रत धरै जैन कौं वाकी सनमुख गयौ भवाति सौं लेनको // 49 / / दोहरा अविरत सम्यकदरसनी, करै न कुमती मन / क्यों करि गनधर पूज्य पद, करै सुभ गति विधान // 50 // जाकी सोलहस्वर्ग से आगै नाही गम्य / तिस नारी को यौ कहै रम्यै(?) मोक्षपद रम्य // 51 // सवैया इकतीसा जाकै सब मलद्वार धारे है निगोद भा(?)र कबहूं न अविकार हिंसा तै रहतु है। सिथिल सुभाव लिए परपंच सब किए लाज कौ समाज(?) धरै अंबर बहुत है / / छट्ठा गुनथांन नांहि थिरता न ध्यान मांहि मास मास रितु ताहि संकता लहतु है। जगत विलंबिनी को हीनदसा लंबिनी को यातै ही नितंबिनी को मोख न कहतु है / / 52 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.269051
Book TitleHemaraj Pandes Caurasi Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmanabh S Jaini
PublisherZ_Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_1_002105.pdf and Nirgranth_Aetihasik_Lekh_Samucchay_Part_2
Publication Year2004
Total Pages5
LanguageEnglish
ClassificationArticle & Literature
File Size381 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy