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आराधक बनवानो मार्ग
ले० पू० पंन्यासजी महाराज श्री भद्र करविजयजी गणिवर
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[ आ एक अमारा महान सद्भाग्यनी वात छे के श्री कापरड़ाजी तीर्थ स्वर्ण जयंती महोत्सव ग्रन्थना प्रारंभमां ज में श्री नमस्कार महामंत्र आदि तात्त्विक विषयोना खास चितक परम पूज्य पंन्यासजी म० श्री भद्र कर विजयजी गरिवरश्रीना मननपूर्ण बे निबंधो मेलववा भाग्यशाली थया छीए । प० पू० पंन्यासजी महाराजश्रीना हृदय मंथनमांथी नीतरेली श्रा अमृतोद्गारनी परंपरा श्राजे चारे बाजू जड़वादनी श्रागमां संतप्त जीवोने अमृत-स्नान करावी परम समता भावनी प्राप्तिमां जरूर हेतु भूत बनशे एवी अमने संपूर्ण श्रद्धाछे । ]
सहजमलनो ह्रास भने भव्यत्वनो विकास
कर्मना संबंधमां आववानी जीवनी पोतानी योग्यताने सहजमल कहेवाय छे अने मुक्तिना संबंधमां आववानी जीवनी योग्यताने भव्यत्व स्वभाव कहेवाय छे । दरेक जीवनी योग्यता भिन्न भिन्न होय छे तेने तथाभव्यत्व कहेवाय छे ।
सहजमलनो ह्रास अने तथाभव्यत्वनो विकास ऋण साधनोथी थाय छे । तेमां पहेलुं दुष्कृतगर्हा छे, बीजुं सुकृतानुमोदन छे अने त्रीजुं अरिहंतादि चारनुं शरणगमन छे ।
दुष्कृतगर्हानो प्रतिबंधक मुख्यत्वे रागदोष छे, सुकृतानुमोदननो प्रतिबंधक द्वेष दोष छे अने शरण गमवनो प्रतिबंधक मोह दोष छे । राग दोष ज्ञान गुण वडे जीताय छे । द्वेष दोष दर्शन गुण बडे जीता छे अने मोह दोष चारित्र गुण वडे जीताय छे ।
ज्ञान गुणनी पराकाष्ठा 'नमो' भावमां छे । दर्शन गुणनो पराकाष्ठा 'अहं' भावमां छे, अने चारित्र गुणनी पराकाष्ठा 'शरण' भावमां छे । ज्ञान गुण मंगलरूप छे, दर्शन गुण लोकोत्तम स्वरूप छे अने चारित्र गुण शरणागतिरूप छे । ए रीते रत्नत्रयीनो विकास श्रात्मानी मुक्तिगमन योग्यतानो परिपाक करे छे अने संसारभ्रमण योग्यतानो नाश करे छे ।
स्वदोष दर्शन ने परगुण दर्शन
चार वस्तु मंगल छे, चार वस्तु लोकमां उत्तम छे अने चार वस्तु शरण करवा योग्य छे । मंगलनी भावना ज्ञान स्वरूप छे । उत्तमनी भावना दर्शन स्वरूप छे । शरणनी भावना