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श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ
चारित्र स्वरूप छ। ज्ञानवड़े राग दोष जाय छ । दर्शन वड़े द्वष दोष जाय छे । चारित्र वड़े मोह दोष जाय छ ।
राग जवाथी पोताना दोष देखाय छ। द्वष जवाथी बीजाना गुण देखाय छे अने मोह जवाथी शरणभूत आज्ञानु स्वरूप जणाय छ।
स्वदोष दर्शन दोषनी गर्दा करावे छे । परगुण दर्शन परनी अनुमोदना करावे छे अने आज्ञानु स्वरूप समजवाथी आज्ञाना शरणे रहेवानी वृत्ति पेदा थाय छ ।
गुणवाननी आज्ञा ज स्वीकारवा योग्य छ । दोष जवाथी ज गुण प्रगटे छ । आज्ञानु आराधन करवाथी ज दोष जाय छे, तेथी आज्ञानु अाराधन मोक्षने माटे थाय छे अने प्राज्ञानी विराधना संसार ने माटे थाय छ।
स्वमति कल्पनानो मोह आज्ञापालनना अध्यवसायथी ज जाय छ। अने ते जवाथी शरण स्वीकारवामां बल पेदा थाय छ ।
अरिहंतनु शरण, सिद्धनुशरण, साधुनु शरण अने केवली प्रज्ञप्त धर्मनु शरण श्रे अरिहंतादि चारनी लोकोत्तमताना ज्ञान ऊपर आधार राखे छे । अ चारनी लोकोत्तमता ए चारनी मंगलमयताना स्वीकार ऊपर आधार राखे छ । श्रे चारनी मंगलमयता तेमना ज्ञान, दर्शन, चारित्रनी मंगलमयताना आधारे छे । अने ज्ञान, दर्शन, चारित्रनी मंगलमयता राग, द्वेष अने मोहनो प्रतिकार करवाना सामर्थ्यमां रहेली छ।
योग्यतुं शरण लेवाथी योग्यता विकसे छे
जीवने सौथी अधिक राग स्वजात ऊपर होय छे । ते रागना कारणे पोतामा रहेला अनंतानंत दोषोनुदर्शन थतु नथी। स्वजातनो राग पर प्रत्ये द्वषनो आविर्भाव करे छ। ए द्वेषना प्रभावे पर गुण दर्शन थतु नथी । स्वदोष दर्शन अने परगुण दर्शन न थवाना कारणे मोहनो उदय थाय छे । मोहनो उदय थवाथी बुद्धि अवराय छ । बुद्धिनु आवरण शरण करवा योग्यनुशरण स्वीकारवामां अंतरायभूत थाय छ ।
योग्यनु शरण न स्वीकारवाथी पोतानी अयोग्यता उपर काबू आवतो नथी पोतानी अयोग्यता कर्मबंधनना हेतुअो प्रत्ये दुर्लक्ष्य करावे छे अने कर्मक्षयना हेतुअोनु सेवन करवामां प्रतिबंधक थाय छे, कर्म बंधना हेतुअोथी पराङ्मुख थवा माटे अने कर्मक्षयना हेतुप्रोनी सन्मुख थवा माटे योग्यता विकसाववी जोईए। ___ योग्यनुशरण लेवाथी योग्यता विकसे छे। योग्यनु शरण लेवानी योग्यता स्वदोष दर्शन अने परगुण ग्रहणथी पेदा थायछे । रागद्वेषनी मंदता थवाथी परगुण अने स्वदोषदर्शन थाय छे । अने रागद्वेषनी मंदता ज्ञान-दर्शन गुणनो विकास थवाथी थाय छ ।