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गोयरचरि गोयमु तहिं फिरंतु, कोइ पुच्छइ पिक्खवि जणु मिलंतु । सो कहइ इत्थ अणसणि पवन्नु, आणंदु उवासउ अत्थि धन्नु । तं सुणवि जाइ तिहिं इंदभूइ, तसु सुक्खतवह पुच्छइ सरुइ । तं नमवि सो वि विहसंतदिट्ठि, इय भणइ नाह ! इहsणन्भवुद्धि | अवधारिउ अप्पणि तुम्हि पाउ, महु उवरि किद्धु गुरुयउ पसाउ । ता भंजउ संसउ अपरिमाणु, गेहीण होइ किं अवहिनाणु १ । होइ त्ति भणिउ सिरिगोयमेण, आणंदु पर्यपइ सुणह तेण । हउं पिक्खउं जोयण पणसयाई, पुव्वावरदाहिणजलहिमाइ । हिमवंतु जाव उत्तरदिसम्मि, अहि पढम नरय उवरिं सुहम्मि । अह जंपर गोयम गुणनिहाणु, आलोइ पडिक्कमि एह ठाणु । जं अवद्दिनाणु गेहीण होइ, एदूरिहिं पिदिखंड न उण कोइ । जंपइ सुस्ताव सच्चि अट्ठि, मिछुक्कडु दिजइ किं व जुट्ठि । ज जुइ ता पडिकमणु तुम्ह, अह सच्चि तु आई देहु अम्ह । इनिवि गोयमुनिरभिमाणु, तं जाइवि पुच्छर वद्धमाणु । कहि नाह ! अम्ह बिहुं जणह माहि, को सच्चवाद ? को मिच्छवाइ ? | आणंदु सच्चाई साहु !, तुह मिच्छवाइ इम भणइ नाहु ।
सुविझत्ति जाएवि तेण, आणंदु खमाविउ गोयमेण । अह चइउ देहु अणसणिण खीणु, सिरिवद्धमाणपयसरणि लीणु । सुमरंतर पंचपरमिडिमंतु, सोहम्मि पत्तु सिवनंदकंतु । अरुणप्पभम्मि उववायसिज, अंतोमुहुत्ति चउउत्तरिज । बत्तीसवरिस जारिस जुवाणु, उप्पन्न सत्तकर देहमाणु ।
तह जय जय नंदय, जय जय भद्दय, अजिय जिणसु जिय पाल य । अम्ह अज्ज अणाहह, तुम्ह हुय नाहह, इय देवगणवयण सुय ॥ ८ ॥
६० आणंदु वि सावउ सा० सं० ॥ ६४ सुमरंत पंचपरमिट्टिसम्मु हं० ॥ ६८ पारिजायाह सा० सं० ॥ ६९ केलीहर सा० ॥
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उप्पन्नु पिक्खि वेमाणिदेउ, पडिहारि विनत्तउ पढमु एउ। अम्ह पुनि जाय तुम्हि इत्थ ठाई, ता बंदहु सासयचेहयाई । सुरु उउउ त तिणि दिन्न बाहु, पूएइ नमसइ तित्थनाहु । तिहिं च पुत्थइ सँग्गनीइ, संधैरैइ देवववहारु जीइ । नंदणवणि तिणि सउं देउ जाइ, तिहिं विलसइ फुल्लिय वणह राइ | संताण कप्पदुम परियार, मंदार पवर हरिचंदणाइ | तिहिं वावि रयणसोवाणपंति, कीलहर पिक्खइ विउलकंति ।
આણંદસંધિ : ૧૭૧
६१ सुणउ सं० ॥ ६५ वाचइ हं० ||
६२ अह सा० ॥
६६ सत्थनीइ सा० सं० ॥
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६३ पिक्खिहि हं० ॥ ६७ संचरइ सा० ॥
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