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આણદધિ : ૧૬૯
सुगुरूण वास सीसहि गहेउ, सुमरेवि पंचपरमिटि देवु । उस्सग्गपुव्व सो सोहि लेइ, सम्मत्तमाइ वय उच्चरेइ । ता उत्तिमहि सो ठाइ ठाणु, वोसरइ अठारस पावठाणु। चत्तारि सरणु मंगलु उतिम्म, अरिहंत सिद्ध साहू सुधम्म । हिंसा अलिउ अणदिन्नु दाणु, मे हुन्न परिग्गहु कोह माणु। माया इ लोहु पिज्ज च दोसु, कालहो वि अभक्खाणं सरोसु । अरईरई य पेसुन्नजुत्त, परिवाय मायमोसं मिछत्त। तिविह तिविह मण वयण काय, कय-कारणाणुमइ पच्चखाय । अरंहत सिद्ध साहू. य सखि, देवाणुसक्खि अप्पाणुसक्खि । जं रयणकरंडगभूउ एहु, वोसिरिसु चरमऊसासि देहु। उवसम्ग देव-माणुस-पसूण, जे हुंति सहिसु ते सवि अणूण । आहार उवहि दुच्चिन्नकामु, ते वोसिरामि सवि जावजम्मु । आहार चउविहु, चइविणु सो वि हु, गुरुमुहेण गहियाणसणु। छजीव खमावइ, भावण भावइ, तणसंथारि निसन्नतणु ॥४॥
सिल मही लवणइ पुँविकाउ, महि ओस करय हिम आउकाउ । विज्जुक अगणि मुह तेउकाउ, तलियंट फुक्क धम वाउकाउ । पत्तेय सहारण वणसईउ, एगिदिउ खामिउं सव्वि खमीउ । किमि पुर अलस बेइंदियाई, जू मंकुण कीड तेइंदियाई। चउरिदिय डंस मसाइ मच्छि, खज्जूरय भमरय तिड्ड विंछि। पंचिंदिय जलयर णेगभेय, चिड लावय तित्तिर खयर जे य। सस सप्प हरिण सूयर अरन्नि, पसु महिस पमुह थलयर जि अन्नि । नारइय सत्तनरएसु संति, जं मणुयखित्ति माणुस वसंति । वेमाणिय जोइस विंतराइ, दसभेय भवणवासियसुराइ । भवमज्झि भमंतइ मह अभवि, जे दुम्मिउ खोमउं हउँ ति सल्वि । आसाइउ कहवि हु तित्थनाहु, केवलिय सिद्ध आयरिय साहु । साहुणि य सावय सावियाउ, चारित्त-नाण-दंसणगुणा उ। तह पाण भूय जिय सत्त काल, आसाइय जे मइं गुणविसाल । ते तिविह तिविह खामेमि पुज!, ते वि हु खमंतु अवराहु मज्झ । आउट्टिहिं दप्पिहि, तह संकप्पिहि, मई जि विराहिय कहवि जिय । ते सवि हउं खामउं, हउं वि खमावउं, निंदउं हिव जे दुकय किय ॥५॥
३७ सांसं ग° सं० सा० ॥ ३८ सुमरइ हं०॥ ३९ वइ हं० ॥ ४० वोसिरइ सा०॥ ४१ सुरम्म सं० सा०॥ ४२ का हं० ॥ ४३ दिव्वमा सा० सं०॥ ४४ सोविणु हं०॥ ४५ पुढमकाय सा०॥ ४६ करइ हं० ॥ ४७ पुंयर ई०॥ ४८ वसंत सा० सं०॥ ४९ खमाउं सं० हं०॥ ५० हुं ति सं०॥
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