________________ 359 | 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी जो शेष रहा जीवन घट, उसमें अमृत भरना॥ युवक-एक- गुरुदेव का बड़ा उपकार है, हमें सन्मार्ग दिखलाते हैं। प्रतिफल की नहीं करते आस, पग-पग पर फर्ज निभाते हैं। युवक-दो- हम धर्म की राह पर चलते, महावीर पथ का अनुसरण करते। गुरुदेव ने धर्मवचनों को सुनाया, साधना के शिखर तक पहुँचाया। युवक-तीन- जाजरी नदी तट पर पीपाड़ ग्राम में जन्म लिया। युवक-चार- निमाज ग्राम में देह त्याग किया। साध्वी-एक- आओ निमाज को पावापुरी सा मान दिलाएं। साध्वी-दो- आओ महावीर की हस्ती को शीश नवाएँ। युवती-एक- गुरुदेव की वाणी मानव मात्र के लिए कल्याणी। युवती-दो- आओ मिलकर गाएं अन्तर्मन में प्रकाश जगायेंगे मोहपाश बंधन कट जायेंगे। काम-क्रोधमद लोभ को त्याग जीवन सफलतम बनायेंगे॥ सभी युवकों का समवेत स्वर भेद ज्ञान की पैनी धार से गुरुदेव ने, काट दिए जग के पाश। मोह मिथ्या की गाँठ गलाकर, अन्तर किया प्रकाश॥ समवेत स्वर- “आज गुरुदेव की वाणी हमारी अध्यात्म-चेतना को झंकृत करती है। यह झंकार गुरु शिखर सम अहसास है। यह उद्घोष है- हम पतित से पावन हो सकते हैं। हमें स्वाध्याय और श्रमण को जीवन का अंग बनाना चाहिए। स्वाध्याय से हमारे विचारों का शोधन होगा और मनोमालिन्य दूर होगा।" (एक पल का अन्तराल) धर्म की राह पर चलने वाले, साधना के गुरु शिखर पर पहुँचाने वाले गुरुदेव की जय!जय!जय! -बी-8, मीरा नगर, चित्तौड़गढ़-312001 (राज.) फोन: 01472-246479, 9461189254 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org