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10 जनवरी 2011. जिनवाणी 346
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श्रमणाचार: प्रमुख प्रश्नोत्तर
श्री पी. एम. चोरडिया
श्रमणाचार से सम्बद्ध ये प्रश्नोत्तर श्रमण के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं तथा श्रमण-जीवन के वैशिष्ट्य को रेखांकित करते हैं। -सम्पादक
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साधु कौन है ?
(1) जो स्वहित(आत्म-कल्याण) और परहित (दूसरों के हित ) को भली-भांति साधता है, वह साधु है।
(2) जो आत्म-चिन्तन, आत्म- - अनुशीलन और आत्म-परिमार्जन करता है, वह साधु होता है । निर्ग्रन्थ किसे कहते हैं ?
मूर्च्छा की गांठ से मुक्त होकर राग-द्वेष से मुक्ति के पथिक हैं, उन्हें निर्ग्रन्थ कहा गया है। साधु मार्ग का क्या अर्थ है ?
(1) वह मार्ग जो मुक्ति के लिए मानक है, साधु मार्ग है ।
(2) ऐसा मार्ग जिसमें साधुओं को आदर्श माना जाता है, साधु मार्ग है।
(3) ऐसा मार्ग जो किन्हीं साधुओं द्वारा प्रवर्तित है, साधु मार्ग है । आर्हती दीक्षा क्या है ?
दीक्षा एक आध्यात्मिक प्रयोगशाला है, जिसमें स्वाध्याय और ध्यान से, आत्मा में रही हुई शक्तियों को प्रकट किया जाता है। दीक्षा अंतर्मुखी साधना है। दीक्षा आत्मा से परमात्मा बनने का श्रेष्ठ साधन है। दीक्षा का अर्थ केवल वेश परिवर्तन या सिर मुंडन कराना ही नहीं है। दीक्षा का अर्थ है जीवन परिवर्तन करना ।
जैन साधु के मूल गुण कौन से होते हैं ?
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह - इन महाव्रतों का पालन तथा यावज्जीवन के लिए रात्रि भोजन का त्याग करना, साधु के मूल गुणों में गिना जाता है ।
शास्त्रों में जैन साधु के 27 गुणों का वर्णन बताया गया है । वे कौन-कौन से हैं?
पांच महाव्रतों का पालन करना, पांच इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना, चार कषाय- क्रोध, मान, माया तथा लोभ का वर्जन करना, ज्ञान-सम्पन्न, दर्शन - सम्पन्न, चारित्र - सम्पन्न, भाव से सत्य,
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