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________________ 224 ] [ कर्म सिद्धान्त हम इस तथ्य को कि मेरा हाथ ऊपर जाता है या उठता है को घटा दें (या निकाल दें) तो क्या शेष रहता है ?" यह कथन समस्यापूर्ण है / दूसरे शब्दों में, 'मेरे हाथ की दैहिक गति एवं मेरे हाथ की साभिप्राय क्रिया' में क्या अन्तर है, यह बिन्दु विवादास्पद है। उपयुक्त समस्या को समझने में निम्न पाँच सिद्धान्त सहायक हैं (1) मानसिक घटनाएँ क्रियाओं के कारण के रूप में (Mental events as the causes of actions) इस दृष्टिकोण के अनुसार अभिप्रायात्मक क्रियाएँ (intentional actions) वे गतियाँ हैं जो विशिष्ट प्रकार की मानसिक घटनाओं या व्यवस्थाओं द्वारा उत्पन्न होती हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार 'मेरे द्वारा मेरा हाथ उठाना' क्रिया को इससे पहले की कारणात्मक घटना या स्थिति द्वारा विभेदित किया जा सकता है / ये कारणात्मक घटनाएँ किस प्रकार की घटनाएँ हैं, इस प्रश्न का उत्तर इस सिद्धान्त द्वारा यह कहकर दिया जा सकता है कि कुछ युक्तियाँ देना, निर्णय लेना, चुनाव करना अथवा क्रिया के बारे में तय करना ही कारणात्मक घटनाएँ हैं / (2) कर्त्ता सिद्धान्त (Agency theory) इस सिद्धान्त के अनुसार गति . का कारण घटना न होकर स्वयं कर्ता होता है। जब मैं क्रिया करता हूँ तब मैं ही गति का कारण होता हूँ। (3) निष्पादन सिद्धान्त (Performative theory)-इस सिद्धान्त के अनुसार इस कथन - 'गति एक अभिप्रायात्मक क्रिया है'-का तात्पर्य क्रिया का वर्णन करना नहीं है और न ही यह बताना है कि वस्तुएँ कैसी हैं अथवा किसने किसे उत्पन्न किया / बल्कि इसका तात्पर्य गति के लिये कर्ता पर दायित्व लागू करने की क्रिया का निष्पादन करता है। (4) लक्ष्य क्रियाओं की व्याख्या के रूप में (Goals as the explanation of actions) : कुछ दार्शनिक यह मानते हैं कि कुछ ऐसी बातें हैं जो किसी गति को क्रिया बनाती हैं। इन विचारकों के अनुसार गति की व्याख्या लक्ष्य को ध्यान में रखकर करनी चाहिये / पूर्व स्थित कारण जैसे कि अवस्था या घटना अथवा कर्ता द्वारा क्रिया की व्याख्या करना ठीक नहीं है। (5) क्रियाओं का संदर्भात्मक वर्णन (Contextual account of actions)-इस सिद्धान्त के अनुसार गति अभिप्रायात्मक तब होती है जब इसका वर्णन नियमों, मानकों अथवा चली आ रही रीतियों के द्वारा किया जाता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229877
Book TitlePashchatya Darshan me Karm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK L Sharma
PublisherZ_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf
Publication Year1984
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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