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D डॉ० के० एल० शर्मा
'मीमांसा' शब्द 'मान' धातु से जिज्ञासा अर्थ में 'सन्' प्रत्यय होकर निष्पन्न होता है । 'जिज्ञासा' रूप विशेष अर्थ में ही मीमांसा पद की निष्पत्ति सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं । इस प्रकार मीमांसा शब्द का अर्थ होता हैजिज्ञासा और जानने की इच्छा । जैमिनी ऋषि 'तत्कालीन मत-मतान्तरों को संकलित किया तथा उन पर अपने विचारों को जोड़कर सूत्रों की रचना की । जैमिनी के मीमांसा - सूत्र में १६ अध्याय हैं । 'श्रघातो धर्म जिज्ञासा' इसका प्रथम सूत्र है और "विद्यते वाऽन्यकालत्वाद्यथायाज्या सम्प्रेषो यथा याज्या सम्प्रेष: " अन्तिम सूत्र है । प्रथम बारह अध्यायों की विषयवस्तु अन्तिम चार अध्यायों ( १३ से १६ तक) की विषयवस्तु से बिलकुल भिन्न है तथा ये अन्तिम चार अध्याय 'संकर्षण काण्ड' के नाम से जाने जाते हैं । शवर स्वामी ने प्रथम १२ अध्यायों पर ही अपना भाष्य लिखा है । अत: मीमांसा का यह भाग ( अन्तिम चार अध्याय) उत्सन्नप्राय हो चुका है । मीमांसा सूत्र ( प्रथम १२ अध्याय) की कुल सूत्र संख्या २६२९ है जो शेष पांच दर्शन- तंत्रों (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक एदं वेदान्त) के सूत्रों की सम्मिलित संख्या के बराबर है ।
मीमांसा दर्शन में चार बिन्दुनों पर प्रमुख रूपेण चर्चा की गई है : (१) धर्म का स्वरूप; (२) कर्म एवं इसका धर्म से सम्बन्ध; (३) वेदों की विषयवस्तु (विशेष रूप से धर्म और कर्म के प्रत्यय) तथा (४) वेदों का विश्लेषण करने की पद्धति का सोदाहरण प्रस्तुतिकरण ( जिससे हम उन्हें सहीसही समझ सकें) ।
मीमांसा - दर्शन में कर्म का स्वरूप
जैमिनी ने धर्म की परिभाषा 'चोदना लक्षणोऽर्थो धर्म : ' (१.१.२ ) कहकर है । जैमिनी के अनुसार क्रिया में प्रेरक वचन से लक्षित होने वाला अर्थ धर्म कहलाता है ।' दूसरे शब्दों में, चोदना द्वारा विश्लेषित अर्थ ही धर्म है । धर्म १. जैमिनी अध्याय
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सूत्र
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में धर्म की चर्चा हेतु निम्न सूत्र द्रष्टव्य हैं
पाद
सूत्र संख्या
१-५; २४-२६
१-१४,
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૪
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१-२
१-४
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