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________________ . . व्यवहार सत्र .... .. - 15 वर्ष चारण भावना, 16 वर्ष तेजोनिसर्ग 17 वर्ष आशीविष भावना 18 वर्ष दृष्टिविष भावना 19 वर्ष दृष्टिवाद 28 वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण सर्वश्रुतानुवादी हो जाता है। सूत्र 37 में उल्लेख है कि आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, सार्मिक, कुल, गण तथा संघ इन दस की वैयावृत्य करने से श्रमण महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाला होता है। इस प्रकार व्यवहार सूत्र अनेक विशेषताओं को लिए हुए है। इसमें श्रमण जीवन में लगने वाले दोष एवं प्रायश्चित्त का विधान तो है ही, साथ ही विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ऊनोदरी तप, संघ-व्यवस्था के नियम आदि अनेक विषयों का विवेचन भी किया गया है। व्यवहार सूत्र पर व्याख्या साहित्य भी लिखा गया है- व्यवहार भाष्य, व्यवहार चूर्णि, व्यवहार वृत्ति आदि प्रमुख व्याख्या साहित्य है। संदर्भ ग्रन्थ 1. त्रीणि छेदसूत्राणि- आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर 2. ववहार सुतं- मुनि कन्हैयालाल 'कमल' 3. छेदसूत्र एक परिशीलन- आचार्य देवेन्द्र मुनि 4. जैनागम नवनीत (पुष्प 7 से 12). आगम मनीषी तिलोक मुनि ___ -सुपुत्री श्री पुखराज बोहरा बोहरो की पोल , महिला बाग. जोधपुर Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.229839
Book TitleVyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Bohra
PublisherZ_Jinavani_003218.pdf
Publication Year2002
Total Pages15
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size227 KB
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