________________ | 300 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क ५.६.महापुराण 24, 2,553 ५७.(क) त्रिषष्टिशलाकयुरुप न.१.३१५:१४ (ख) महापुराण 24, 2073 ५८.महापुराः। 24/6/573 ५९.महापुराण 24/1,573 60 रत्नानि स्वजातीयमभ्ये समुत्कर्षवन्ति वस्नी सगवायांगत्ति पृ. 29 25. प्रवचनमागेदार परशा 1216-1215 62. चक्र छवं......घुसस्तिर्यगृहस्टद्रयांलयोरंतग़लम्। प्रवचनसारोद्धारवृत्ति पत्र 351 63. भर हस्स प रन्नो..... उत्तरिललाए विज्जाहरसेटीए समुप्पन्ने। 64. प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, पत्र 350-3.1 --आवश्यकचूर्णि पृ. 208 65 स्कन्धपुर, काशीखण्ड, गंगा सहननान, अध्याय 25 ६६.अमरकोश: 1/10/31 १७.जम्वृदीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 4 ६८.स्थानांग 5.3 69. समवायांगः २४वां समवाय ७०.जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 4 71. निशीथसूत्र 12/42 ७२.बृहत्कल्पसूत्र 4/32 ७३.स्थानांग 5/2/1 74. निशीथ 12/42 ७५.बृहत्कल्प 4/32 ७६.(क) स्थानांगवृत्ति 5/2/1 (ख) बृहत्कल्यभाष्य टीका 5616 १७.स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, अध्याय 29 ७८.(क) त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र 1/4 (ख) स्थानांगसूत्र 9/19 (ग) जम्बूद्रीपप्रज्ञप्ति, भरतचक्रवर्ती अधिकार, वक्षस्कार 3 (घ) हरिवंशपुराण, सर्ग 11 (ड) माघनन्दी विरचित शास्त्रसरसमुच्चय, सूत्र 58, पृ. 54 ७९.स्थानांगवृत्ति, पत्र 226 80 जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 3 81. (क) अवश्यनियुक्ति 436 (ख) आवश्यकचूर्णि पृ 227 82 जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भागः-३, पृ. 289 83. वहीं, भाग-३. पृ. 417 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org