________________ प्रज्ञापना सूत्र: एक समीक्षा 2831 6. वायगवरवंसाओ तेवीसइमेणं धीरपुरिसेण, दुद्धरधरेण मणिणा पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीणं। सूयसागरा विणेऊण जेण सुयरयणमुत्तमं दिण्णं, सीसगणस्स भगवओ तस्स नमो अज्जसामस्स।। 7. जैनागम ग्रंथमाला-पण्णवणा सुन्। 8. जैन धर्म का मौलिक इतिहस 9. नियुक्तियाँ जो देवद्धिंगणि के पूर्ववतो गनी भी जाती हैं, उनमे नंदी का उल्लेख है "नदी अणुओगदार विहिवदुग्याइयं व नाउणं'। नियुक्ति संग्रह आव. नि. गाथा 1026 सुत्तं नंदी माइयं-वही गाथा सं. 1265 द्वादशार नयचक्र की सिंहगणि क्षमाश्रमण की टीका में वर्तमान नंदी से भिन्न पाठ हैं। 10. प्रज्ञापना की मलयगिरि टीका व अनेक ग्रंथों में। 11. समवायाग समवाय 84 तथा उत्तराध्ययन अ.२८ अन्यथा ह्यनिबद्धमंगोपांगत: समुद्रप्रतरणवद दुरध्यवसेयं स्यात्। -रास्वार्थ भाष्य १२.तत्र सरप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, पंवषष्टांगयोरुपांगभूते इतरे (चंद्रप्रज्ञप्ति) तु प्रकीर्णरूपे 13. सुखबोधा समाचारी 1112 ई. (जैन साहित्य का वृहद् इतिहास) 14. सुखबोधा समावारी वायणाविहि आदि (जैन साहित्य का वृहद् इतिहास) 15. कहीं गात्र 'जाव' शब्द से, कहीं 'जाव' व 'जहा पण्णवणाए' सूत्र निर्देश के साथ, कहीं 'जहा वक्कंतीए, ओहीपयं भणियध्वं' आदि पद के नाम देते हुए, कहीं 'जहा पागवणाए ठाणपए' सूत्र के साथ पद का नाम देते हुए आदि तरीकों से संकेत किया गया है। 16. नवगयजरमरणभए सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेण। वंदागि जिणवरिंद तेलोक्कगुरु-महावीरं / / 17. जीव अजीव तत्त्व- श्री कन्हैयालाल लोढा -पाली बाजार, महामंदिर, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org