Book Title: Pragnapana Sutra Ek Samiksha Author(s): Parasmal Sancheti Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 1
________________ प्रज्ञापना सूत्र : एक समीक्षा श्री पारसमल संचेती प्रज्ञापना सूत्र के ३६ पदें। प्रकरणों में मोवादि पदार्थो का प्रज्ञापन निरूपण हुआ है। इसके लिए भी व्याख्याप्रज्ञप्ति की भांति 'भगवती' विशेषग प्रयुक्त हुआ है। अगमज्ञ श्री पारसमल जो संचेती ने प्रज्ञापना सूत्र के कर्ता, रचनाकाल, चतुर्थ उपांगत्व, रचना शैली, व्याख्या-ग्रन्ध. अन्य सूत्रों में अनिदेश आदि की चर्चा करने के साथ प्रज्ञापना सूत्र को विपयवस्] की भी संक्षिपा विवेचना की है। लेख विचारपूर्ण है। -सम्पादक नंदी सूत्र में आगमों के अंग प्रविष्ट श्रुत और अंगबाहा श्रुत दो भेद किये गए हैं। उसमें प्रज्ञापना की गणना अंगबाह्य के उत्कालिक श्रुत में की गई है। श्वेताम्बर संप्रदाय में मान्य यह चौथा उपांग सूत्र है। जिस प्रकार आगमों में आचारांग के लिए भगवान" एवं व्याख्याप्रज्ञप्ति के लिये 'भगवती' विशेषण उपलब्ध है उसी प्रकार प्रज्ञापना के लिये भी भगवती विशेषण उपलब्ध होता है। वह इसकी महत्ता का सूचक है। यह सूत्र विविध श्रुत रत्नों का खजाना है व दृष्टिवाद का निष्यन्द(निष्कर्ष) है। कहा है 'अज्झयणमिण चित्त सुयरयण दिदिठवायणीसंद प्रज्ञापना का अर्थ __ 'प्र' यानी विशिष्ट प्रकार से 'ज्ञापन' यानी निरूपण करना। यथावस्थित रूप से जीवादि पदार्थों का ज्ञान कराने वाली होने से यह 'प्रज्ञापना' है। 'यथावस्थितं जीवादिपदार्थज्ञापनात् प्रज्ञापना' यह अर्थ आचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने किया है। प्रज्ञापना का अर्थ करते हुए आचार्य मलयगिरि लिखते हैं... 'प्रकर्षेण नि:शेषकुतीभितीर्थकरासाध्येन यथावस्थितनिरूपणलक्षणेन ज्ञाप्यन्ते शिष्यबुद्धावारोप्यन्ते जीवाजीवादय: अनयेति प्रज्ञापना।" अर्थात् जिसके द्वारा शिष्यों को जीव-अजीव आदि तत्त्वों के यथावस्थित स्वरूप का निरूपण किया जाय, जो विशिष्ट निरूपण कुतीर्थिक प्रणेताओं के लिये असाध्य है, वह प्रज्ञापना है। इस सूत्र में जीवादि पदार्थों के भेदों के रहने के स्थान आदि का व्यवस्थित क्रम से, विस्तार से विशिष्ट वर्णन होने से इसका प्रज्ञापना नाम सार्थक है। इस सत्र के प्रथम पद का नाम भी प्रज्ञापना है। रचना आधार, कर्ता व समय । प्रज्ञापना कर्ता ने आरम्भ की गाथाओं में इसे दृष्टिवाद का निष्यंद कहा है- 'अज्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिदिब्वायणीसंदं। जह वण्णिय भगवया अहमवि तह वण्णइस्सामि ।। इससे प्रज्ञापना की रचना का आधार अनेक पूर्व रहे हों ऐसा मालूम पड़ता है। इसके कर्ता के विषय में आर्यश्याम (कालक) का नाम निर्विवाद रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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