SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगम सूत्र 2671 राग-द्वेषादि विभाव परिणतियों से परिणत यह जीव संसार में कैसी-कैसी अवस्थाओं का, किन-किन रूपों का, किन-किन योनियों में जन्म मरण आदि का अनुभव करता है, इस प्रकार के विषयों का उल्लेख इन नौ प्रतिपत्तियों में किया गया है। __ इस प्रकार यह सूत्र और इसकी विषयवस्तु जीव के संबंध में विस्तृत जानकारी देती है। अतएव इसका जीवाभिगम नाम सार्थक है। यह आगम जैन तत्त्वज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है! प्रस्तुत सूत्र का मूल प्रमाण 4750 (चार हजार सात सौ पचास) श्लोक ग्रन्थान है। इस पर आचार्य मलयगिरि ने 14000 (चौदह हजार) ग्रन्थान-प्रमाण वृत्ति लिखकर इस गम्भीर आगम के मर्म को प्रकट किया है। वृत्तिकार ने अपने बुद्धि वैभव से आगम के मर्म को हम साधारण लोगों के लिये उजागर कर हमें बहुत उपकृत किया है। इस आगम का अध्ययन करने से हमें जीव-अजीव तत्त्व का ज्ञान होने से हम आत्मा व शरीर की भिन्नता का बोध प्राप्त करते हुए अपने चरम व परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। अत: यह आगम हमारे लिये उपयोगी है। - 295, प्रथम 'ए' रोड़, सरदारपुरा, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229824
Book TitleJiva jiva bhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash Salecha
PublisherZ_Jinavani_003218.pdf
Publication Year2002
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size108 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy