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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाक सिद्ध हुए दो तीन यावत् अनन्त समय हो चुका है।
अनन्तर सिद्धों के तीर्थ, अतीर्थ आदि १५ प्रकार कहे गये हैं तथा परम्पर सिद्ध के भी अनेक प्रकार कहे गये हैं। यथा- १. प्रथम समय सिद्ध, २. द्वितीय समय सिद्ध ३. तृतीय समय सिद्ध यावत् असंख्यात समय सिद्ध और अनन्त समय सिद्ध।
संसारवर्ती जीवों के प्रकार के संबंध में नौ प्रतिपत्नियाँ बताई गई है। प्रतिपत्ति का अर्थ है प्रतिपादन, कथन । इस संबंध में नौ प्रकार के प्रतिपादन
जो आचार्य संसारवर्ती जीवों को दो प्रकार का कहते हैं वे ही आचार्य अन्य विवक्षा से संसारवर्ती जीव के तीन प्रकार भी कहते हैं। अन्य विवक्षा से चार प्रकार भी कहते हैं, यावत् अन्य विवक्षा से दस प्रकार भी कहते हैं। विवक्षा के भेद से कथनों में भेद होता है किन्तु उनमें विरोध नहीं होता।
संसार समापन्नक जीवों के भेद बताने वाली नौ प्रतिपत्तियों में से प्रथम प्रतिपत्ति का निरूपण करते हुए इस सूत्र में कहा गया है कि संसारवर्ती जीव भी दो प्रकार के हैं- त्रस और स्थावर। द्वितीय प्रतिपत्ति
द्वितीय प्रतिपत्ति में संसार-समापन्नक जीवों के तीन भेद बताये गये हैं- १. स्त्री, २. पुरुष ३. नपुंसक। तृतीय प्रतिपत्ति
तृतीय प्रतिपत्ति में संसार-समापन्नक जीव चार प्रकार के कहे गये हैं- १. नैरयिक २. तिर्यंच योनिक ३. मनुष्य ४ देव
नैरयिक सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा- प्रथम पृथ्वी नैरयिक द्वितीय पृथ्वी नैरयिक, तृतीय पृथ्वी नैरयिक, चतुर्थ पृथ्वी नैरयिक, पंचम पृथ्वी नैरयिक, षष्ठ पृथ्वी नैरयिक और सप्तम पृथ्वी नैरयिक। इस प्रतिपत्ति में सात नारकों एवं उनके गोत्रों का वर्णन किया गया है। नैरयिक जीवों उनके निवास रूप नरक भूमियों के नाम, गोत्र, विस्तार आदि क्या और कितने हैं इस प्रकार नरक भूमियों और कारकों के विषय में विविध जानकारी प्रदान के गई है।
तिर्यक् योनिक जीव पाँच प्रकार के कहे गये है- एकेन्द्रिय तिर्यक योनिक, द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिक, बौन्द्रिय तिर्यक्योनिक, चतुरिन्द्रिर तिर्यक्योनिक, पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक। एकेन्द्रिय के पाँच भेद बताये गरे है--पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय। द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय को विकलेद्रिय कहा गया है। पंचेन्द्रिय के दो भेट किये गये हैं- पर्याप्त एवं अपर्याप्त।
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