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औषपातिक सूत्र. ...... ...
247 परंपराओं का वर्णन, अम्बड़ मंन्यासो का विस्तृत वर्णन, समुद्घान एवं सिद्धावस्था का चित्रण उपलब्ध है। इस विस्तृत वर्णन में तत्कालीन समाज, राज्य व्यवस्था, शिल्प एवं कलाकौशल की जानकारी शोधार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण है। आगमिक विषय-वस्तु का विश्लेषण चम्पानगरी प्रस्तुत आगम का आरंभ गंगानगरी के सुरम्य , नित्रोपत्र वन से हुआ है, जहां बाद में तीर्थकर प्रभु महावीर का पटार्पण हुआ। चम्पा के वर्णनान्तर्गत नगरी के वैभव, समृद्धि एवं सुरक्षा के उल्लेख के साथ नागरिक जीवन, लहलहाती खेती, पशु-पक्षी, आमोद-प्रमोद के साधन, बाग बगीचे, कुएँ, नालाब--बावड़ियाँ, छोटे छोटे बांधों से सम्पन्न वह नगरी नंदन वन तुल्य प्रतीत होती थी। ऊँची विस्तृत गहरी खाई से युक्त परकोटे, सुदृढ़ द्वार, भवनों की सुन्दर कलात्मक कारीगरी, चौड़े तिराहेंचौराहे, नगर द्वार, तोरण, हाट बाजार, कमलों से युक्त जलाशय, शिल्प एवं वास्तुकला के सुन्दर नमनों से भरी पूरी श्री वह नगरी। वस्तुत: वह नगरी प्रेक्षणीय अभिरूप या मनोज्ञ और प्रतिरूप अर्थात मन में बस जाने योग्य थी। पूर्णभद्र चैत्त्य या यक्षायतन- जहां भगवान महावीर विराजे, वह पूर्णभद्र चैत्य प्राचीन एवं प्रसिद्ध था। वह छत्र , ध्वज, घंटा, पताका युक्त झंडियों से सुसज्जित था। वहां रोममय पिच्छियां सफाई हेतु थीं। गोबर निर्मित वेदिकाएं थी और चंदन चर्चित मंगल घट रखे थे। चंदन कलशों और तोरणों से द्वार सुसज्जित थे। उन पर लंबी पुष्पमालाएं लटक रही थी। अगर कुन्दुरूक लोबान की गमगमाती महक से सुरभित था। हास्य-विनोद का स्थान नर्तकों, कलाबाजों, पहलवानों आदि की उपस्थिति से प्रकट था। लौकिक दृष्टि से पूजा स्थल था वह। वनखण्ड- बनखण्ड अनेकविध वृक्षों से परिपूर्ण हरे-भरे पत्र, पुष्प, फूलफलों से युक्त सपन एवं रमणीय था। पक्षियों के कलरव से गुंजायमान था। वनखण्ड की पाटावली में अशोक वृक्ष विशिष्ट था। अनेक रथों यानों, डोलियों एवं पालखियों को ठहराने हेतु पर्याप्त स्थान था। वनखण्ड में कदम्बादि अनेक वृक्षों से घिग लताकुंज सभी ऋतुओं में खिलने वाले फूलों से सुरम्य था। शिलापट्ट-सिंहासनकृति था। चित्रांकित सुन्दर कला कारीगरी से युक्त था। चम्पानरेश कणिक, राजमहिषियां एवं दरबार- भगवान महावीर के यहाँ पधारने एवं विराजने के कारण चम्पानरेश कूणिक एवं उनके दरबार का वर्णन भी किया गया है। राजा कूणिक हिमवान पर्वत सदृश प्रजापालक, करुणाशील, यि यो, सम्मानित, पूजित पत राजलक्षणों से युक्त था। इन्द्र समान ऐश्वर्यवान, पितृतुल्य एवं पगक्रमी था। उसका भव्य प्रासाद, विशाल
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