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| अन्तकृतदशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन वर्तमान में उपलब्ध अन्तकददशांग में नहीं हैं। नन्दीसूत्र में वही वर्णन है जो वर्तमान में अंतकृद्दशा में उपलब्ध है। इससे यह फलित होता है कि वर्तमान में अन्तकद्दशा का जो रूप प्राप्त है वह आचार्य देववाचक के समय के पूर्व का है। वर्तमान में अन्तकृद्दशा में आठ वर्ग हैं और प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं किन्तु जो नाम, स्थानांग, तत्त्वार्थराजवार्तिक व अंगपण्णति में आये हैं, उनसे पृथक हैं। जैसे गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य. अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु। आचार्य अभयदेव ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर कहा है। इससे यह स्पष्ट परिज्ञात होता है कि वर्तमान में उपलब्ध अन्तकृढ़शा समवायांग में वर्णित वाचना से अलग है। कितने ही विद्वानों ने यह भी कल्पना की है कि पहले इस आगम में उपासकदशा की तरह दस ही अध्ययन होंगे, जिस तरह उपासकदशा में दस श्रमणोपासकों का वर्णन है. इसी तरह प्रस्तुत आगम में भी दस अर्हतों की कथाएँ आई होंगी।"
उपर्युक्त वर्णन से हम यह कह सकते हैं कि अन्तकृद्दशा में उन नब्बे महापुरुषों का जीवनवृत्तान्त संगृहीत है, जिन्होंने संयम एवं तप-साधना द्वारा सम्पूर्ण कर्मों पर विजय प्राप्त करके जीवन के अन्तिम क्षणों में मोक्ष-पद की प्राप्ति की। इस प्रकार जीवन-मरण के चक्र का अन्त कर देने वाले महापुरुषों के जीवनवृत्त के वर्णन को ही प्रधानता देने के कारण इस शास्त्र के नाम का प्रथम अवयव "अन्तकृत्' है। नाम का दूसरा अवयव ‘दशा' शब्द है। दशा शब्द के दो अर्थ हैं-- १. जीवन को भोगावस्था से योगावस्था की ओर गमन ‘दशा' कहलाता है. दूसरे शब्दों में शुद्ध अवस्था की ओर निरन्तर प्रगति ही 'दशा है। २. जिस आगम में दस अध्ययन हों उस आगम को भी 'दशा' कहा गया है। प्रस्तुत सूत्र में प्रत्येक अन्तकृत् साधक निरन्तर शुद्धावस्था की ओर गमन करता है, अत: इस ग्रन्थ में अन्तकृत् साधकों की दशा के वर्णन को ही प्रधानता देने से “अन्तकृद्दशा'' कहा गया है। अन्तकृतदशा सूत्र के कर्ता एवं रचनाकाल
अंग आगमों के उद्गाता स्वयं तीर्थकर और सूत्रबद्ध रचना करने वाले गणधर हैं। अंगबाह्य आगमों के मूल आधार तीर्थकर और उन्हें सूत्र रूप में रचने वाले हैं. चतुर्दश पूर्वी, दशपूर्वी और प्रत्येक बुद्ध आचार्य। मूलाचार में आचार्य बट्टकेर ने गणधर कथित, प्रत्येक बुद्ध कथित और अभिन्नदशपूर्वी कथित सूत्रों को प्रमाणभूत माना है।"
इस प्रकार अंगप्रविष्ट साहित्य के उद्गाता भगवान महावीर हैं और इनके रचयिता गणधर सुधर्मास्वामी। अंगबाह्य साहित्य में कर्तृत्व की दृष्टि से अनेक आगम स्थविरों द्वारा रचित हैं और अनेक द्वादशांगों से उद्धत हैं। वर्तमान में जो अंगसाहित्य उपलब्ध है वह भगवान महावीर के समकालीन
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