________________ व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ... . 177 है, जिसका प्रश्शम खाड द्वितीय शतक तक प्रकाशित है। हिन्दी एवं गुजराती अनुवाद अनेक स्थानों से प्रकाशित हैं। संदर्भ 1. (अ) समवायांग सूत्र 93, नन्दीसूत्र 85 (ब) तत्त्वार्थराजवार्तिक 1.20, पखण्डागम, भाग 1, पृष्ठ 101 एवं कसायपाहुइ, प्रथम अधिकारपृष्ठ 125 के अनुसार इसमें 60 हजार प्रश्नों का व्याकरण है। 2. इह स देत अज्झयणसाग-नन्दौर्णि सूत्र 895.65 3. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग-२ के अनुसार इसमें 1883 शतक हैं, जबकि आगम प्रकाश समिति, ब्यावर एवं भगवई (लाडनूं) के अनुसार 1922 सनक हैं। 1925 शतकों का उल्लेख भगवतीसूत्र के उपसंहार में पाया जाता है। बीसवें शतक के छठे उद्देशक में पृथ्वी, अप और लायु इन तीनों की उत्पत्ति का निरूपण है। एक परम्परा के अनुसार यह एक उद्देशक है, दूसरी परम्परा के अनुसार ये तीन उद्देशक हैं। तीन उद्देशक मान्ने पर उद्देशकों की संख्या 1525 हो जाती है। 4. अन्य तीन प्रकार है(अ) अथवा विविधतया विशेषण वा आख्यायन्त इति व्यारत्या अभिलाग्यपदार्थवृत्तयः, ता: प्रज्ञाप्यन्ते यस्याम् / (ब) अथवा व्याख्यानाम्- अर्थप्नतिपादनानां प्रकृष्टा: ज्ञप्नयो- ज्ञानानि यस्यां सा व्याख्याप्रज्ञप्ति:। (स) अथवा व्याख्यायाः अर्थन्थनस्य प्रज्ञायाश्य-तद्धेतुभूतबोधस्य व्याख्यासु बा प्रज्ञाया: आप्ति -प्राप्ति: आत्तिर्वा-आदानं यस्यः सकाशादसौ व्याख्याप्रज्ञप्तिाख्याप्रज्ञात्तिर्वा व्याख्याप्रज्ञाद्वा भगवतः सकाशादाप्तिरात्तिा गणधरस्य यस्याः सा तथा। ___अभयदेवसृरि ने 'विवाहपणणत्ति एवं 'विवाहपत्ति ' नामों को भी संगति बतायी है। 5. समवायागसूत्र, सूत्र 140 6. सम्पादकीय, पृ. 16-17, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ग्रंथाक 14, आगम प्रकाशन समिति. व्यावर 7. उनकी यह प्रस्तावना 'भगवती सूत्र : एक परिशीलन' नाम से तारक गुरु ग्रन्थालय, उदयपर से विक्रम संवत 2049 में प्रकाशित हो गई है। 8. जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग--२, पृ.१४०, जैन इतिहास समिति, जयपुर, सन् 9. जैन दर्शन का आदिकाल, पृ. 13 10 भगवई, खण्ड–१, भूमिका पृ. 33, लाडनूं - 3 K 24-25, कुड़ी भगतासनी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर (राज.)342005 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org