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बादल, कुम्भ आदि से समता करते हुए सैकड़ों रूपों में मानवीय वृत्तियों का इस सूत्र में वर्णन किया गया है। उदाहरण के रूप में..
वृक्ष चार प्रकार के होते हैं . पत्रयुक्त, पुष्पयुक्त, फलयुक्त, छायायुक्त। इसी प्रकार मनुष्य भी चार प्रकार के होते हैं-- पत्रयुक्त वृक्ष के समान केवल छाया में आश्रय देने वाले। गुष्पवाले वृक्ष के समान(केवल सद्विचार देने वाले)। फलयुक्त वृक्ष के समान(अन्न-वस्त्रादि देने वाले) और छाया युक्त वृक्ष के समान (शान्ति सुरक्षा और सुख देने वाले)!
एक अन्य उदाहरण में कहागया है- मेघ चार प्रकार के होते हैं१. एक मेघ गर्जता है, बरसता नहीं। २. एक मेघ बरसता है, गर्जता नहीं। ३. एक मेघ गर्जता भी है और बरसता भी है। ४. एक मेघन गर्जता है, न बरसता है।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के हाते हैं१. कुछ व्यक्ति बोलते है. पर देते कुछ नहीं। २. कुछ व्यक्ति बोलते हैं और देते भी हैं। ३. कुछ व्यक्ति देते हैं, पर बोलते नहीं। ४. कुछ व्यक्ति न बोलते हैं और न देते हैं।
इस सूत्र में केवल मेघ, बिजली, गर्जन, वर्षण आदि से संबंध जोड़ते हुए सात रूपों में मेघ के अध्ययन के माध्यम से मनुष्य स्वभाव का विश्लेषण किया गया है।
इस प्रकार लगभग १०० उपमेय-उपमानों के रूप में उपमेयों के विश्लेषण के साथ-साथ उपमानों के रूप में मनुष्य-स्वभाव का विश्लेषण करते हुए सूत्रकार ने मानवता को हर पहलू से पहचानने का प्रयत्न किया है।
___इस प्रकार स्थानांग सूत्र के माध्यम से शास्त्रकार ने जीवन का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत किया है।
संदर्भ १. स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या-गीता २. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पृ. १७२ ३. तओ थेरभूमीओ पण्णताओ, तंजहा–जाइधेरै, सुत्तथेरे, परियायथेरे। सट्ठिवासज ए
समणे जिग्गंथे जातिधेरे, ठाणांग--समवाय--धरेण समणे जिग्गंथे सुयोरे,
वीसवास--एरियाए णं समणे णिग्गंथे परियायथेरे। -स्थानांग ३/३/१६५ ४. सूत्रकृतांगे त्रयाणां त्रिषष्ट्याधिकानां पाण्डिकशतानां दृष्टय : प्ररूप्यन्ते, ततो हीनपयो मतिभेदेन मिथ्यात्व यायात्। चतुर्वर्ष-पर्यायस्य धर्मेऽवपाढमतिर्भवति. तत: कुसमयै पहियते, तेन चतुर्वर्ष–पर्यायस्य तदुद्देष्टुमनुज्ञातम्-तथा पंचवर्षोऽपवादस्य योग्य इति कृत्वा पंचवर्षस्य दशकल्पव्यवहारान् ददाति। तथा पंचाना वर्षागामुपरिपर्यायो निकृष्ट उच्यते, तेन कारणेन स्थाने समवाये नवाधीतेन श्रुतस्थविरा भवन्ति तेन कारणेन नदरेशन प्रतिविष्टपर्यायो गृहीतस्तथ स्थानं समवायश्च
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