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________________ रात्र का तिपाद्य: भौतिक विज्ञान ने शब्द परमाणु का होना सिद्ध कर दिया है। शब्द की परिभाषा करते हुए जैन सिद्धान्त दीपिका में कहा गया है कि "संहन्यमानानां भिद्यमानानां ध्वनिरूपः परिणामः शब्दः " अर्थात् टूटते हुए स्कन्धों का ध्वनि रूप परिणाम शब्द है। इसके प्रायोगिक और वैससिक दो भेद माने गए हैं। प्रायोगिक शब्द, जिसका उच्चारण प्रयत्नपूर्वक होता है, वह भाषात्मक (अर्थ - प्रतिपादक) और अभाषात्मक (तत, वितत, धन, सुषिर आदि नानाविध वाद्यों के शब्द) रूपों में दो प्रकार का होता है। वैनसिक शब्द मेघादि से उत्पन्न स्वाभाविक ध्वनि को कहा जाता है। स्थानांग में द्वितीय स्थान के तृतीय उद्देशक में शब्द के भाषा (भाषात्मक) नो भाषा (अभाषात्मक) दो भेद बताए गए हैं। पुनः शब्द के दो भेद बताए गए हैं--- अक्षर संबद्ध और नोअक्षर संबद्ध (ध्वन्यात्मक) । नो अक्षर संबद्ध के ही यहाँ तत, वितत, घन और सुषिर आदि भेद किए गए हैं। शब्दोत्पत्ति के दो कारण बताए गए हैं- पुद्गलों के परस्पर मिलने से और पुद्गलों के परस्पर भेद से। पुद्गल-भेद शब्द ही परमाणु विस्फोट की ओर संकेत कर रहा है। परमाणु विज्ञान पर जैन संस्कृति ने जो कुछ कहा है वह आधुनिक भौतिक विज्ञान की कसौटी पर शत प्रतिशत खरा उतर रहा है। काव्य नाट्य आदि स्थानांग के चौथे स्थान में चार प्रकार के वाद्यों तत (वीणा आदि), वितत (ढोल, तबला आदि), घन (घुंघरू, कांस ताल आदि), सुषिर (बांसुरी आदि) का वर्णन है। चार प्रकार के नाट्य (नृत्य) ठहर-ठहर कर नाचना, संगीत के साथ नाचना, संकेतों द्वारा भाव प्रकट करते हुए नाचना और झुक कर या लेटकर नाचना का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार चार प्रकार के गायन बताए गए हैं- नृत्य-गायन, छन्द- गायन, अवरोहपूर्वक गायन, आरोह पूर्वक गायन । इसी प्रकरण में चार प्रकार की पुष्प रचना, चार प्रकार के शारीरिक अलंकार, चार प्रकार के अभिनय आदि का वर्णन स्थानांग की विषय विविधता का स्पष्ट प्रमाण है। L गद्य, पद्य, कथ्य (कथा-कहानी) और गेय रूप में चार प्रकार के काव्य भेदों का तथा दशम स्थान में दस प्रकार के शुद्ध वाक्यों के प्रयोग आदि के रूप में वर्ण्य विषय ने काव्य जगत को ही स्पर्श किया है, स्थानांग यह प्रमाणित कर रहा है। मानवीय वृत्तियों का अध्ययन- स्थानांग सूत्र में मानवीय स्वभाव का परिचय देने वाले सूत्र सब से अधिक हैं। कहीं वृक्षों से, कहीं वस्त्रों से, कहीं कोरमंजरी से कहीं कूटागार - शाला से, कहीं वृषभ से, कहीं हस्ती से, कहीं शंख, धूम, अग्नि शिखा, वनखण्ड, सेना, पक्षी, यान, युग्म, सारथी, फल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229811
Book TitleSthanang Sutra ka Pratipadya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakdhar Shastri
PublisherZ_Jinavani_003218.pdf
Publication Year2002
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size223 KB
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