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________________ 329 |15,17 नवम्बर 2006 | जिनवाणी | 329 आए, पौषध करूँ, तब फरसना करके शुद्ध होऊँ"। पौषध व्रत के अतिचार शुद्धि के प्रकरण में तो उपर्युक्त प्रकार का पाठ है, जबकि प्रतिलेखना-दोष-निवृत्ति तथा निद्रा-दोष-निवृत्ति आदि श्रमण सूत्र की पाटियों में ऐसा पाठ नहीं है कि 'ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है....आदि'।' इससे यह स्पष्ट है कि ये पाटियाँ साधुओं के लिए ही हैं क्योंकि ये मुनियों के नित्यक्रम से ही जुड़ी हुई हैं, श्रावकों के नहीं। यदि ये पाटियाँ श्रावकों के लिए होती तो इनमें भी ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो हैं.... " ऐसा पाठ होता, किन्तु ऐसा पाठ नहीं है। इसका तात्पर्य यह है कि ये पाटियाँ श्रावक प्रतिक्रमण में नहीं होनी चाहिए। प्रश्न निद्रा तो सभी श्रावक लेते हैं फिर 'निद्रा दोष निवृत्ति' का पाठ श्रावक प्रतिक्रमण में क्यों न हो? उत्तर निद्रा-दोष-निवृत्ति के पाठ की शब्दावली ही यह बतला देती है कि यह पाठ साधु जीवन का है, श्रावक का नहीं। इस पाठ में अधिक देर तक सोने का, मोटे आसन पर सोने का, छींक जंभाई से होने वाले दोष का, स्त्री विपर्यास का, आहार पानी सम्बन्धी विपर्यास आदि दोषों का प्रतिक्रमण होता है। श्रावक के लिए सोने के समय का कोई नियम शास्त्रकारों ने नहीं फरमाया, किन्तु साधु के लिए निश्चित समय बताया है। श्रावक डनलप के गद्दे पर भी सोता है, पर मुनि सामान्य पतले आसन का ही उपयोग करते हैं। श्रावक दिन रात खुले मुँह बोलता है किन्तु मुनि मुखवस्त्रिका का उपयोग करते हैं। अतः रात्रि में छींक जंभाई आदि के अवसर पर अनुपयोग से मुखवस्त्रिका ऊँची नीची हो जाए तो खुले मुँह से वायु निकलने से हिंसा का दोष लग सकता है। श्रावक के लिये स्त्री को पास में रखकर शयन करने का निषेध नहीं है, किन्तु साधु तीन करण तीन योग से ब्रह्मचर्य का आराधक होता है। अतः स्वप्न में भी यदि स्त्री सम्बन्धी विपर्यास हो तो उसे दोष लग सकता है। अनेक श्रावक रात्रि को आहार करते हैं, किन्तु मुनि रात्रि भोजन के सर्वथा त्यागी होते हैं। अतः स्वप्न में भी आहार ग्रहण कर ले तो रात्रिभोजन सम्बन्धी दोष लग सकता है। निद्रा संबंधी उपर्युक्त अनेक दोष साधु के लगते हैं। अतः यह पाठ साधु प्रतिक्रमण में ही होना चाहिए, श्रावक प्रतिक्रमण में नहीं। प्रश्न श्रावक भी पौषध आदि अवसरों पर उपर्युक्त अनेक नियमों का पालन करते हैं। अतः श्रावक प्रतिक्रमण में यह पाटी रहे तो क्या अनुचित है? उत्तर पहले बताया जा चुका है कि कभी-कभी आराधित किए जाने वाले व्रतों की शैली में “ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, अवसर आए तब फरसना करके शुद्ध होऊँ।" आदि शब्दावली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229794
Book TitleShravak Pratikraman me Shraman Sutra ka Sannivesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadanlal Katariya
PublisherZ_Jinavani_002748.pdf
Publication Year2006
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size41 KB
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