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जिनवाणी
|15,17 नवम्बर 2006 जैसे- प्रेयोबन्धन और द्वेषबन्धन। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के बन्धन कहेंगे। जैसे-प्रेयोबन्धन और द्वेष बन्धन। आर्यो! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण किया है, जैसे-मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण करेंगे। जैसे- मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड! ___आर्यों ! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए चार कषायों का निरूपण किया है, यथाक्रोध-कषाय, मान-कषाय, माया-कषाय और लोभ-कषाय। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए चार प्रकार के लिए कषायों का निरूपण करेंगे। जैसे- क्रोध-कषाय, मान-कषाय, माया-कषाय और लोभ-कषाय। आर्यों! जैसे मैनें श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच कामगुणों का निरूपण किया है, जैसे - शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श । इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच कामगुणों का निरूपण करेंगे। जैसे- शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्शी __आर्यो! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए छह जीवनिकायों का निरूपण किया है। यथापृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक , वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिका इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए छह जीवनिकायों का निरूपण करेंगे। यथा-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पति-कायिक और त्रसकायिक।। ___ आर्यो! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए सात भय स्थानों का निरूपण किया है, जैसेइहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए सात भयस्थानों का निरूपण करेंगे। यथा- इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। ___ आर्यों ! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आट मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्य गुप्तियों का,दश प्रकार के श्रमण-धर्मों का , ग्यारह उपासक प्रतिमाओं का यावत् तैंतीस आशातनाओं का निरूपण करेंगे। यहाँ ग्यारह उपासक प्रतिमाओं का कथन भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए किया गया है, जबकि
इन प्रतिमाओं का पालन श्रावक ही कर सकता है, इसे कैसे समझा जाय? उत्तर उपासक प्रतिमाओं की पालना श्रावक ही करता है किन्तु श्रमण-निर्ग्रन्थों को इन प्रतिमाओं
का उपदेश दिया गया है, उसका कारण यह है कि तैंतीस बोलों का सामूहिक तौर से कथन साधुओं के लिए किया गया है। इन तैंतीस बोलों के अन्तर्गत होने से उपासक प्रतिमाओं का
प्रश्न
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