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________________ 296 । जिनवाणी 15,17 नवम्बर 2006 दोष लगाता है। उसके आस्रव द्वार तो प्रतिक्षण खुले ही रहते हैं। प्रश्न प्रतिक्रमण करने के स्थान पर घंटाभर परोपकार के काम में लगाया जाय तो अधिक अच्छा होगा। प्रतिक्रमण (रूढ़) करने वाले को समय यापन करने के अलावा अन्य क्या लाभ? उत्तर प्रतिक्रमण (आवश्यक) में पहला आवश्यक सामायिक है। सामायिक व्रत करने से ४८ मिनट का समय तो आस्रव (पापासव) के त्यागपूर्वक बीतेगा। प्रतिक्रमण में षड्काय जीवों को अथवा समस्त जीवों को अभय मिलता है, जबकि परोपकार में एक या कुछ व्यक्तियों को ही सहयोग मिलता है। फिर परोपकार के कार्यो में हिंसक प्रवृत्ति भी हो सकती है जो पाप बंध का कारण होती है। प्रतिक्रमण तो किया ही जाय, क्योंकि वह इहलोक एवं परलोक के लिए हितकर है। अन्य समय में विवेकपूर्वक पर उपकार किया जा सकता है। प्रश्न प्रतिक्रमण करने जितना समय सबको नहीं मिल पाता। क्या प्रतिक्रमण को संक्षिप्त करके अल्प समय में नहीं किया जा सकता? उत्तर आवश्यक सूत्र में प्रतिक्रमण को आवश्यक कहा गया है। आवश्यक छह बताए गए हैं, जिन्हें विधिवत् सम्पन्न करने से ही पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है। जैसे बड़े रोगों और असाध्य माने जाने वाले रोगों के लिए लंबे काल का उपचार बताया जाता है, उसे संक्षिप्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार भवरोगों के निवारण हेतु निश्चित समय का प्रतिक्रमण करना भी आवश्यक है। प्रश्न हमारा प्रतिक्रमण प्रायः द्रव्य प्रतिक्रमण ही होता है अतः भाव प्रतिक्रमण ही कर लेना पर्याप्त है, द्रव्य प्रतिक्रमण करने की क्या आवश्यकता है? उत्तर द्रव्य प्रतिक्रमण, भाव प्रतिक्रमण के लिए प्रेरक बन सकता है और भाव प्रतिक्रमण द्रव्य प्रतिक्रमण के लिए! छः आवश्यकों एवं पाठों से भाव प्रतिक्रमण की प्रेरणा की जाती है अतः द्रव्य 'भाव' में सहायक है। द्रव्य प्रतिक्रमण से भाव-प्रतिक्रमण पुष्ट होता है। अतः द्रव्य एवं भाव प्रतिक्रमण दोनों की सम्यक् आराधना आवश्यक है। प्रश्न भगवान् ऋषभदेव एवं तीर्थंकर महावीर के शासन के साधु-साध्वियों के लिए दोनों समय प्रतिक्रमण का निर्देश किया गया है। बीच के २२ तीर्थंकरों के साधुओं के लिए ऐसा नहीं बताया गया है। वे दोष लगने पर ही प्रतिक्रमण करते थे। अब भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? उत्तर भगवान् अजितनाथ से भगवान् पार्श्व तक के साधक ऋजु और प्राज्ञ प्रकृति के थे अथवा सरल स्वभावी और ज्ञानवान थे। अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर के साधक जड़ और वक्र प्रकृति वाले हैं। वे न ज्ञानवान हैं न सरल परिणामी। अतः उनके लिए पापों का प्रतिक्रमण एवं पुनः व्रतों में स्थिर होने के लिए प्रातः और सायंकाल दोनों समय-प्रतिक्रमण करने का विधान किया गया है। प्रश्न प्रतिक्रमण आवश्यक से पूर्व सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव और वन्दना आवश्यक करना जरूरी क्यों है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229790
Book TitleShravak Pratikraman Sambandhi Prashnottar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Karnavat
PublisherZ_Jinavani_002748.pdf
Publication Year2006
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size77 KB
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