________________ 177 ||15,17 नवम्बर 2006|| | जिनवाणी 2. देशावकासिक व्रत दिगवते परिमाणं यत्तस्य संक्षेपणं पुनः / दिने रात्रौ च देशायकासिकव्रतमुच्यते / / - योगशास्त्र 3.84 छठे दिशिव्रत में जिन दिशाओं में आवागमन के परिमाण का नियम रखा जाता है उसका दिन और रात्रि के अन्तर्गत संक्षेपण करना देशावकासिक व्रत कहलाता है। अर्थात् एक दिन या रात्रि में दसों दिशाओं में आवागमन को सीमित करना देशावकासिक व्रत है। 3. पौषध व्रत चतुष्पव्या चतुर्थादि कुव्यापारनिषेधनम् / ब्रहाचर्यक्रिया स्नानादित्यागः पौषधव्रतम् -योगशास्त्र 3.85 अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या इन चार पर्वो पर उपवासादि तप करके, पापकारी सदोष ___ व्यापार का और स्नानादि शरीर की शोभा का त्याग करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पौषधव्रत है। 4. अतिथिसंविभाग व्रत दानं चतुर्विधाहार-पात्राऽऽच्छादन-सद्मनाम् / अतिथिभ्योऽतिथिसंविभागवतमुदीरितम् ।।-योगशास्त्र 3.87 देश-काल की अपेक्षा से साधुओं को चार प्रकार के दान कल्पनीय हैं। चार प्रकार के आहार-अशन, पान, खादिम और स्वादिम-पात्र, वस्त्र और रहने का स्थान इन चतुर्विध द्रव्यों का दान साधुओं को करना अतिथि संविभाग व्रत कहलाता है। -शोध छात्रा, आकांक्षा, 12/3, पावटा बी रोड़, जोधपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org