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115,17 नवम्बर 2006||
|| जिनवाणी ११. (क) सर्वार्थसिद्धि-६.२
(ख) सूत्रकृतांग शीलांकाचार्य वृत्ति, २.५.१७, पृष्ठ १२८ (ग) अध्यात्मसार, १८.१३१ (घ) तत्त्वार्थ सूत्र , ६.१-२ (ङ) श्रावक प्रज्ञप्ति, ७९ (च) तत्त्वार्थ सार ४-२ (छ) चन्द्रप्रभ चरित्र-आचार्य वीरनन्दी, १८.८२ (ज) अमितगति श्रावकाचार, ३.३८ (झ) ज्ञानार्णव, १, पृष्ठ ४२ (अ) धर्मशर्माभ्युदय-कवि हरिचन्द्र, २१.८४ (ट) मूलाचारवृत्ति-वसुनन्द्याचार्य, ५-६ (ठ) आराधना सार टीका- श्री रत्नकीर्तिदेव,४
(ड) आवश्यक सूत्र हरिभद्रीया वृत्ति, पृष्ठ ८४ १२. (क) प्रथम कर्मग्रन्थ, गाथा १३
(ख) स्थानांम सूत्र २.४.१.५ टीका
(ग) गोम्मटसार, कर्मकाण्ड २१ १३. पंचाध्यायी- २.९८-६-७ १४. (क) गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, ३९
(ख) स्थानांग सूत्र २.४.१०५ टीका १५. तत्त्वार्थ भाष्य ८.१ १६.(क) आवश्यकचूर्णि ६.१६५८
(ख) प्राकृत पंच संग्रह-१.७ १७.(क) गुणस्थान क्रमारोहण स्वोपज्ञ वृत्ति, गाथा ६
(ख) कर्मग्रन्थ, भाग-४, गाथा ५१
(ग) लोक प्रकाश सर्ग-३, गाथा ६८९ १८. (क) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पृष्ठ ११६
(ख) विशेषावश्यक भाष्य १२२७ (ग) आवश्यक सूत्र हरिभद्रीय वृत्ति, १०९, पृष्ठ ७७ (घ) पंच संग्रह स्वोपज्ञ वृत्ति, ३-१२३, पृष्ठ ३५ (ङ) उत्तराध्ययन सूत्र नियुक्ति-वृत्ति-शान्तिचन्द्रसूरि, १८०
(च) स्थानांग सूत्र, अभयदेव वृत्ति- ४, १ १९.(क) दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ८
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