________________ 27 ||15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी o कायोत्सर्ग का सीधा सादा अर्थ होता है- काया का त्याग, किन्तु यह बात नहीं है, यहाँ पर वास्तविक अर्थ है काया के अभिमान का- काया की अनवरत ममता का त्याग। इससे हमारी पाप प्रवृत्ति रुकती है और सच्चे चिरस्थायी चिदानन्द की ओर आत्मा झुकती है। सुख का मूल साधन त्याग है। -सामायिक-प्रतिक्रमण सूत्र, पृष्ठ 29 o कायोत्सर्ग खड़े होकर करना चाहिए। दोनों पैरों को पंजों की तरफ से 4 अंगुली के अंतर से और एडी की तरफ 3 अंगुली के अन्तर से रखना चाहिए। दोनों हाथ नीचे की ओर शरीर से संलग्न रखें, ऐसे ही निश्चल होकर 19 दोषों से रहित, किए हुए आगारों के सिवा निश्चेष्ट रह कर कायोत्सर्ग सम्पन्न करना चाहिये। यदि खड़े रहकर न कर सकें तो किसी भी स्थिर आसन से कर सकते हैं। -सामायिक-प्रतिक्रमण सूत्र, पृष्ठ 30 0 प्रत्याख्यान का पर्याय गुणधारणा है। इसका अभिप्राय यह है कि कायोत्सर्ग से आत्मा की निर्मलता हो जाने पर शक्ति बढ़ाने के लिये जो नमुक्कारसी आदि त्यागरूप उत्तर गुणों को स्वीकार करना उसी को प्रत्याख्यान कहा जाता है। पच्चक्खाण से आत्मा में कर्मसंचय का हेतु रुक जाता है, उसके रुकने से इच्छा का निरोध होता है। इच्छा-निरोध से सब वस्तुओं की लालसा (तृष्णा) जाती रहती है, फिर जीव शान्तिमय जीवन बिता सकता है। सामायिक-प्रतिक्रमण सूत्र, पृष्ठ 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org