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आजनो मनुष्य, प्राचीन मुक्तक संग्रह, प्रपा, तरंगवती वगेरे भायाणीसाहेबना महत्त्वना ग्रंथो छे.
कवि - विवेचक जयंत पारेखे भायाणीसाहेब माटे कह्यं हतुं के विरल प्रतिभा - आवी प्रतिभा कोण जाणे फरी क्यारे प्रगटशे ! रामप्रसाद बक्षी, उमाशंकर जोषी, सुरेश जोषी अने हवे भायाणीसाहेबनी विदायथी आपणे खरेखर खूब वामणा बनी गया छीए. 'कुमारसंभव' मां कालिदासे हिमालयनुं जे वर्णन कर्तुं छे ए भायाणीसाहेबने बंधबेसे छे.
अमणे पण नगाधिराजनी जेम बने बाजुना तोयनिधिनुं - महासागरनुं अवगाहन कर्तुं छे. पूर्व अने पश्चिम, प्राचीन अने अर्वाचीन, पांडित्य अने रसिकता वगेरेने आवरी लीधां छे तथा भाषा, साहित्य अने संस्कारितानो महिमा कर्यो छे अने महिमा करतां शीखव्युं छे.
भायाणीसाहेब पोताना तेजथी प्रकाशता हता भेटले एमनी हाजरीथी व्यक्ति, विद्या अने संस्था मात्र शोभी ऊठतां हतां. गौरवान्वित बनी जतां हतां. भायाणीसाहेब केवळ व्यक्ति नहोता रह्या जीवतीजागती संस्था बनी गया हता. पांच-पांच दायकाथी ओमनां सानिध्य अने स्नेह पामीने हुं तो धन्य बन्यो छु. हवे सवारे सवारे 'जयंत, हुं आवी गयो छु' एम फोन कोण करशे ? मीठी टकोर, टोळ - टिखखळ अने मुक्त हास्यथी वातावरण हवे क्यारे गाजी ऊठशे ?
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कवि, विवेचक अने मुंबई युनिवर्सिटीना गुजराती विभागना अध्यक्ष नीतिन महेताओ कह्युं हतुं के विरल प्रतिभा, सहज प्रज्ञा अने ज्ञानमां मोकळाश एटले भायाणीसाहेब. एक वत्सल पिता गुमाव्या होय एवी लागणी अनुभवं छं.
एमणे जीवनमां घणुं शीखव्युं छे- टट्टार ऊभा रहेता, विरोध करता; मानसगुरु हता. मारो पीएच. डी. नो थिसिस जलदी प्रगट थाय एवं तेओ इच्छता हता. हवे ज्यारे एकाद मासमां पुस्तक प्रगट थशे त्यारे ए जोवा तेओ नहीं होय छतांय तेओ अनेकरूपे अस्तित्वमां मारी आसपास छे. तेओ अमारामां सदाय जीवंत रहेवाना छे.
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