________________
वीसमी सदीना हेमचंद्राचार्य
गुजराती साहित्यमा हरिवल्लभ भायाणी एक अत्यंत मोटा गजानुं नाम. समग्र गुजरातमां अने एमना शिष्यवृंदमां ए ओळखाय भायाणीसाहेब तरीके. 'साहेब' शब्द जेटलो आदरवाचक एटलो ज प्रियपात्र. साहेब खरा पण साहेबनो कोई भार नहीं. एमणे जिंदगीमां विद्वत्तानी साह्यबी भोगवी छे पण जिंदगी सादाईथी हरीभरी. मन, वचन, कर्ममा एकता अने पारदर्शकता. जे लागे ते ज बोले. जे लागे ते ज लखे. बोल्या ने लख्या पछी जो पुनर्विचारणा करता ओमनो मत बदलाय तो एना विशे पण वात करे. मारो एमनी साथेनो संबंध एम.ए.ना विद्यार्थी तरीके बंधायेलो. ए संबंध मात्र गुरुशिष्यनो न रह्यो पण बंने कुटुंब जाणे के एक कुटुंब होय एम वंशवृक्ष तरीके पूर्ण घटा-छटाथी फूल्यो अने फाल्यो. थोडांक वर्षों एम ना हाथ तळे पीएच.डी.नो अभ्यास करवातुं पण बन्यु. ए हमेशां एक ज वात कहेता के तमारो जे विषय होय एनां मूळ सुधी जाओ. मारो पीएच.डी.नो विषय lyrics विशेनो-ऊर्मिकाव्य विशेनो हतो. एमणे मने पहेली सलाह ए आपी के तारे लिरिक्सनो सांगोपांग अभ्यास करवो होय तो लिरिक्सनां मूळ सेमेन्टिसिझममा छे तो तारे रोमेन्टिसिझमनी विभावनाने लगतां पुस्तको वांचीने तारे तास मंतव्य सुधी पहोंचवू जोईए. जो कोई नवो मुद्दो करवानो न होय तो पूर्वजोनां अवतरणो टांकीटांकीने महानिबंधने दळदार बनाववानो कोई अर्थ नथी. अलबत्त, चर्चाविचारणा माटे जे अवतरणो टांकवां पड़े ए टांकवां पण अनिवार्य होय तो ज.
उत्पल भायाणीनुं चार्टर्ड एकाउन्टन्टना अभ्यास माटे मुंबई आववानुं थयुं त्यारे एमना जीवनो टुकडो सोंपता होय ए रीते एमणे मने उत्पलने सोंप्यो. पछी तो ए संबंध ए रोते विकस्यो के उत्पल मात्र भायाणीसाहेबनो पुत्र नहीं पण अंगत मित्र थई गयो. आ बधुं कई रीते बन्यु एनी कोई प्रक्रिया नथी होती. ज्या बुद्धि काम न आवे त्यां एक ज शब्द मददे आवे छे. कहो के ऋणानुबंध. आ ऋणानुबंध मात्र भायाणीसाहेब के एमनां पत्नी चंद्रकळाबहेन पूरतो न रह्यो पण उत्पल, कल्याणी अने ऋचा साथे पण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org