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एटलो ज रह्यो.
भायाणीसाहेबने तमे कोई पण प्रश्न पूछो तो एमनी पासे जवाब होय. तात्कालिक जवाब न होय तो कहे के आजकालमा जोईने कहीश. ओमने माटे कोई व्यक्ति नानी नहीं के मोटी नहीं. अजाण्यो माणस पण पत्र लखे तो एमनुं जवाबनुं पोस्टकार्ड तैयार ज होय. भजगोविन्दम्मां गोविन्द शब्द शुं काम के गोपीगीतनो छंद कयो.... तो एने माटे पण आपणा प्रश्ननुं निराकरण करी आपे. प्राकृत संस्कृतनी हजारो पंक्तिओ ओमने कंठस्थ. मुंबईमां तो ए हता त्यारे तो महेफिल ज हती. अमदावाद गया तो अमारा सौने माटे एक खालीपो हतो. एवं न हतुं के मतभेद न हता पण चर्चाने अंते कोई कड़वाश नहीं पण नरी संवादिता. प्रारंभमां मारी कविसंमेलननी प्रवृत्ति माटे ए थोडाक नाराज हता पण पछी एक दिवस मने कहे के मने लागे छे के तमे जे काम करो छो ते योग्य छे अने करवा जेवुं छे. कवितानो संबंध कान साथे छे. मुद्रणकळाने लीधे काव्यनां पुस्तको प्रगट थाय ए बराबर छे पण कविताने प्रजा सुधी लई जवी ए पण एक धर्म छे. मने अवारनवार पत्रोमा टांकता पण खरा के तमे प्रवृत्तिओ भले करो पण तमारी तबियत पहेलां. अमने माणसमात्रमां जीवंत रस अने अंदरनी ऊंडी निसबत. बाळको साथै अ बाळक जेवा थई जाय. मने एक प्रसंग बराबर याद छे. मारी दीकरी मिताली पांच-छ वर्षनी हती. मारे घरे ए सहकुटुंब रह्यां हां - पाटकरना घरमां. मितालीने श्लोको शीखवता. पण जे दिवसे भायाणीसाहेब घर छोडीने गया त्यारे मिताली धोधमार रडी हती. बुद्धिना बळे बौद्धिकोनां हृदय जीतवा ए कदाच आसान छे पण बाळकनुं हृदय जीतवुं ए एटली सहेली वात नथी.
गुजराती अने अनेक भाषानी कहेवतो कहे. प्राकृत, अपभ्रंशना श्लोको पण कहे. महुवानी वातो पण करे. नाणावटी हॉस्पीटलमां हता त्यारे छेल्लो पत्र कदाच ओमणे गुलाबदास ब्रोकरने लख्यो. सतत कार्यशील माणसने निष्क्रिय थवुं पोषाय नहीं. एमनुं शरीर भांग्युं हतुं पण मन तो एवं ने एवं कुशाग्र. ईश्वरमां नहीं मानता होय पण सृष्टिना अने मनुष्यना ऐश्वर्यमां मानता. छेले छेल्ले एमणे हरीन्द्रनाथ चटोपाध्यायना अंग्रेजी काव्यपुस्तकनो अनुवाद
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