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भारतीय तत्त्वविद्याना अजोड विद्वानने स्मरणांजलि
- विजयशीलचन्द्रसूरि भारतीय दर्शनोना अधिकारी विद्वान पंडित दलसुखभाई मालवणियाना ता. २८.२.२०००ना रोज थयेल निधनथी आंतरराष्ट्रीय विद्वज्जगते एक प्रचंड प्रतिभा गुमावी छे. भारत अने गुजरात रांक बन्या छे, तो मूळथी ज विद्वानोनी बाबतमां कंगाळ एवो जैन समाज हवे पूर्णपणे कंगाळ बन्यो
___वर्षो अगाउ आपणा अग्रणी विद्वान श्रावक पं. अगरचंद नाहटाए व्यथित हृदये कहेलुं के दिल्लीमा श्वेतांबर-दिगंबर एम बन्ने धाराओना जैन पंडितोनुं एक संमेलन हतुं; तेमां दिगंबर पक्षे शताधिक विद्वानोनी उपस्थिति सामे श्वेतांबर पक्षे अमे बे-त्रण गण्यागांठ्या माणसो ज हता ! ।
रूढिपरस्त समाज अने तेना नेताओ इच्छे या न इच्छे, पण विद्याकीय अने साहित्यिक भूमिकाए, राष्ट्रीय तेमज आंतरराष्ट्रीय स्तरे, अन्य संप्रदायो तथा धर्मोनी समकक्ष, आपणा सिद्धांतो वगैरेनुं यथार्थ अने अधिकृत प्रतिपादन कर ए आजे अनिवार्य बन्युं छे; अने ए कार्य आवा अधिकारी विद्वानो विना करवानुं रूढ माणसो माटे शक्य ज नथी. आ संदर्भमां श्री दलसुखभाईने मूलववामां आवे तो जैन श्वेतांबर पक्षना समर्थ प्रतिनिधि तरीके तेमणे देशमां पण अने विश्वस्तरे पण आपणो पक्ष रजू को छे, एटलुं ज नहि, पण अन्य धर्मना के संप्रदायोना लोको द्वारा थती अयोग्य के विपरीत रजूआतनो सज्जड प्रतिवाद पण तेमणे अनेक वार कर्यो छे. वास्तवमां, तेमनी रजूआतने पडकारी शके, तेमने जूठा पाडी शके अथवा तेओनी उपस्थितिमां असत्य प्रतिपादन करी शके तेवी क्षमता ज अन्योमां न हती. सत्यनिष्ठ अने अनाग्रही एवी पारदर्शी विद्वत्तानी आ निष्पत्ति हती.
जीवनना छेल्लो वर्षोमां तेओ स्थितप्रज्ञभावे अने लगभग जेने साक्षीभाव कहीं शकाय तेवा भावे ज जात-जगत अने कुटुंब साथे वर्तता रह्या होवाथी कोई विशेष लेखन के चिंतन तेमणे कर्यां नथी. परंतु तेम छतां, जीवनना अंतिम दिवसो पर्यंत बौद्धिक अने मानसिक क्षमता एटली तो सजागसबळ के कोइनी जूठी दलील के प्रतिपादनमां भद्रभावे जूठी हा-हा न
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