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अनुसंधान-१७ • 214 अपायेला ७मांथी ६ मत (नं. ३, ५, ७, ११, १६, १९) क्षीतमां मळे छे ज्यारे ४ (नं. १, ४, १०, १८) मत एवा छे के जेमां कौशिक, नाम नथी, पण क्षीतमां ते कौशिकने नामे छे. 'क्षीत'मां मळता बाकीना १२ मत (नं. २, ६. ८, ९, १२, १३, १४, १५, १७, २०, २१, २२)माधावृमां मळता नथी. ___ 'दैव' परनी 'पुरुषकार' वृत्तिमा जे त्रण मत कौशिकना नामे मळे
छे, ते तो 'क्षीत'मां नोंधायेला छे. आम कौशिकना धातुओ विशेना आ मतो साचववानुं श्रेय क्षीरस्वामीने फाळे जाय छे.
तेमना आ मतोनो अभ्यास करतां एवं चोक्कस लागे छे के तेमणे पाणिनीय धातुपाठ पर सळंग वृत्ति लखी हशे. तेओ पाणिनीय परंपरा उपरांत एमना समयमा विद्यमान बीजी व्याकरणपरंपराओथी सारी रीते परिचित जणाय छे. तेमना अमुक मत कातंत्र व्याकरणना टीकाकार दुर्ग (इसनी आठमी सदी) साथे तो कोई मत चान्द्र व्याकरणकार साथे तो अमुक भत जैनेन्द्र व्याकरणना टीकाकार नन्दीस्वामी अने द्रमिडो साथे मळता आवे छे.
धातुओना स्वरूपो माटेनां तेमनां सूचनो शिष्ट संस्कृत साहित्य उपरांत वैदिक साहित्य पर आधारित जणाय छे. प्राकृत भाषानी असरने लीधे बदलाई गयेला धातुओना मूळ स्वरूपने तेमणे सूचव्यां छे. केटलाक धातुओना डान्त पाठने यन्त सूचववामां तेओ दुर्गने अनुसरता जणाय छे. धातुओना स्वरूपो विशेनो तेमनो अभिगम मौलिक जणाय छे.
धातुओना अर्थ बाबतनां पण तेमणे मौलिक विचारणा दर्शावी छे. लिपिवांचन दोषने लीधे बदलाई गयेला धातुना मूळ अर्थ तरफ ध्यान दोयुं छे. ___ एमणे सूचवेला नवा धातुओमाथी केटलाक धातु एवा छे के कोई धातुपाठमां मळता नथी. एनो अर्थ ए नथी थतो के ए धातुओ प्रमाणभूत नथी. अगियारमी सदीनीये पहेलां थई गयेला आ वैयाकरण समक्ष एवं साहित्य विद्यमान हशे के जेमां आ धातुओ प्रयोजाया हशे. ए साहित्य अत्यारे लुप्त थई गयुं होवाथी · अ ए धातुओ प्रयोजाया होवा- कोई प्रमाण मळे नहीं एम बनी शके.
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