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अनुसंधान-१७. 213 आ धातुनां अद्यतनकाळमां अमुक ज रूपो प्रयोजातां जोयां होय तेथी तेओ 'घुष' ए पाठनो आग्रह राखे छे एम बने. लगभग पाणिनीय परंपराना बधा धातुपाठमां 'चुरादि' गणमां आ धातुनो पाठ 'घुषिर' मळे छे. आ धातुनो अर्थ 'अविशब्दन' के 'विशब्दन' ते विशे वैयाकरणोमां मतभेद प्रवर्ते छे. पण ते बाबतमां कौशिक क्षीरस्वामी साथे सहमत छे तेथी तेनी चर्चा अस्थाने छे.
२३. लुट विलोडने । माधाव (पृ. १११).....एतदादयः पाठत्यन्ताष्टवर्गतृतीयान्तां इति कौशिककाश्यपनन्दिद्रमिडाः । माधावृमां नोंधायेलो कौशिकनो आ एक ज मत एवो छे के जे 'क्षीत.'मां नथी. सायण वधारामां नोंधे छे के ते चास्मादनन्तरे पिटहटी च पेटुः । आ परथी जणाय छे के तेमणे लुट पछी तरत पिट अने हटनो पाठ को हशे. अने लुट, पिट, हट, विट बिट (बेमांथी एकनो पाठ हशे) इट, किट, कटी-आ सातेक धातुओ पछी तरत पठनो पाठ कर्यो हशे. कौशिक ; तेना जेवो ज एक अप्रसिद्ध वैयाकरण काश्यप (वृत्तिकार ?) जैनेन्द्र व्याकरणना कर्ता नन्दिस्वामी अने द्रमिड वैयाकरणो आ धातुओनो यन्तने बदले डान्त पाठ करे छे. आ धातुओमाथी मात्र विट आक्रोशे धातुनो 'विड आक्रोशे' एम 'डान्त' पाठ धाप्र. (पृ. २६) अने हैमधातुमाला (पृ. ३१)मां अने कवि (पृ. २७)मां मळे छे.
क्षीत. (पृ. ५६)मा 'लुट विलोडने ।' सूत्रनी वृत्तिमा 'लुड इति द्रमिडाः' एम निर्देश मळे छे. सायणे ए पण नोंध्यु छ के भूसूत्रे सुधाकर:- लुल विलोडने इति लान्तोऽयं दृश्यते, लोलदभुजाकार बृहत्तरंगम्... । (३. ७२) इति माघः । डलयोरेकत्वस्मरणम् इति प्रतिविधेयम् । __माधावृ मां मळतो सुधाकरनो आ ज मत पुरुषकार वृत्ति(पृ. ५८)मां मळे छे. सुधाकरना ड अने ल ने एक मानवाना विधान परथी अनुमान थई शके के ते पण कदाच लुड ने मूळ धातु मानवानो मत धरावता होय. एम न होय तो पण कौशिकने नन्दिस्वामी अने द्रमिडोनुं समर्थन तो मळी ज रहे छे. ___उपर्युक्त वृत्तिग्रंथोमां कौशिकना जुदा जुदा धातुओ विशेना कुल २३ मत छे, जेमांना २२ (नं १-२२) 'क्षीत'मां छे. माधावृमां कौशिकना नामथी
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