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शुभतिलकोपाध्याय - रचिता || गायत्री मन्त्र वृत्तिः ॥
सं. मुनि रत्नकीर्तिविजय गायत्री मंत्र ए हिन्दु धर्मनो एक अत्यन्त पवित्र अने सात्त्विक मंत्र मनायो छे. आजे पण उग मंत्रनां जप, पुरश्चरण, यज्ञ इत्यादि व्यापक प्रमाणमां थतां जोवां मळे छ भने हवे तो गायत्रीनां मंदिरो पण ठेरठेर रचायां छे.
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केटलाक मंत्रो सकलागमोपनिषद्भूत होय छे. अर्थात् सर्व धर्मोमां तेने मान्यता मळी शके तेवा होय छे. दा. त. सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन व्याकरणमां श्री हेमचन्द्राचार्ये प्रयोजेलो अर्ह एवो बीजमंत्र एवं उ गायत्रीमंत्रनुं पण छे. एवं अत्रे प्रकाशित रचनानुं अवलोकन करतां समजाय ले
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अत्रे प्रकाशित रचनानुं नाम छे गायत्रीमंत्रवृत्ति तेना कता एक जैन मुनि छे : शुभतिलकोपाध्याय. १६मा शतकना प्रारंभकाळमां लखायेली प्रतना आधारे २० मा शतकमां लखायेल ताडपत्र पोथी (संभवत: पाटण - भंडार) नी प्रांत पुष्पिका जोतां जणाइ आवे छे के आ रचना १६मा शतकनी तो छे ज; ते पहेलांनी होय तो य ना नहि.
आ रचनामा कर्ताए ब्राह्मणधर्ममां प्रसिद्ध एवा गायत्रीमंत्रनुं जुदां जुदां (सर्व) दर्शनोनी मान्यता अनुसार अर्थघटन - व्याख्यान कर्तुं छे, तेमां अनुक्रमे १. जैन दर्शन, २ नैयायिक, ३. वैशेषिक, ४. सांख्य, ५. वैष्णव, ६. बौद्ध, ७. जैमिनीय ( मीमांसक - भाट्ट) आटलां दर्शनोनो समावेश थाय छे.
आ बधां अर्थघटन पत्यां पछी ध्यानसाधनाना, मंत्र-तंत्र साधनाना तथा वैदकशास्त्राना संदर्भमां पण मंत्रनुं अर्थघटन कर्ताए आप्युं छे, जे कर्तानी विलक्षण प्रतिभानुं सूचन करे. छे.
एक बात नोंधपात्र छे के जैन मुनिओनी कलम सर्वव्यापी हती, अने अकुतोभयसंचरिष्णु हती. बीजा धर्मनां तत्त्वो, मंत्रो, कृतिओनुं अध्ययन कर, ते पर विवरण लखवु ए जैनमुनिओने माटे अत्यंत प्रिय तथा सहज हतुं. आ रचना आ विधाननी वधु पुष्टि करी आपे छे.
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