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अनुसंधान - १७ • 163
छे. 'नंद्यावर्त 'मां नंदीना आवर्तननो, धुरीने आधारे गोळ गोळ फरवानो भाव रहेलो छे; जेम अरहट (रेंट) अथवा घाणीनो बळद चक्कर चक्कर फरे तेम में उपर जे चित्र आप्युं छे ते मथुराना ईस्वीसन्नी प्रथम सदीमां अंकायेल आयागपट्टमां वच्चे मोटां मांगलिक चिह्न रूपे कोरेलुं छे. तेनी चतुर्भुजाओ माछलीना उत्तरांग जेवी बतावी होई कोशकारोए कहेल 'महामत्स्य' नं प्रतिमान पण त्यां सार्थक बनतुं जोई शकाय छे.
उपर्युक्त त्रणे आकृतिओ केटलीक वार अपसव्यक्रमथी (एटले के ऊलटा क्रमथी) पण आलेखवामां आवे छे.
खोडीदास परमारे 'घडंली' अने 'स्वस्तिक'नी आकृतिओ विषय परनी चर्चाने आगळ धपावतां अनुसंधान अंक ४ (पृ. ८६ - ८८ पर) विशेष कह्युं छे अने त्यां भायाणी साहेबनी पण ए पर विशेष नोंध छे, जे अभ्यसनीय छे.
श्री परमारे " गौमूत्रिक" शब्द अने तेनो वर्तमाने प्रचलित गुजराती पर्याय "बळद मूतरणां" विषे पण वात करी छे. शिल्पमां पण "गौमूत्रिक" भात मंदिरोना द्वारबंधमां 'पत्रशाखा' पर कोरवामां आवती अने वृद्ध सोमपुराओ तो आजे पण ए भातने बोलचालमां बळद-मूतरणां ज कहे छे.
(४) 'अंक ४' मां आचार्य विजयप्रद्युम्नसूरिए हरिभद्रसूरिना 'पंचाशक' प्रकरणनुं सदीओथी २०मुं विलुप्त थयेलुं प्रकरण काढी प्रगट कर्तुं छे, जे एक अपूर्व उपलब्धि छे. आचार्यश्रीने धन्यवाद. जोके तेनुं शैली, वस्तु, अने संदर्भोनी दृष्टिए विशेष परीक्षण थवुं जरूरी छे.
(५) 'अंक ५'मां (पृ.१- ३) मां आचार्यवर विजयसूर्योदयसूरि द्वारा प्रकाशमां आवेलुं "धुमावली - प्रकरण" एक सरस अने मनोहारी रचना छे. तेमां आवता अंतिम 'भरविरह' शब्द परथी तेमणे ते (याकिनीसूनु ) हरिभद्रसूरिनी रचना होवानुं जे सूचन कर्तुं छे ते अस्थाने नथी. भाषा- कलेवर अने संगठन जोतां ते रचना ईस्वीसनना १० मा शतकथी पहेलांनी होई शके छे : अने ते आठमा सैका पछीनी अने कोई चैत्यवासी जतिनी न होय तो हरिभद्रसूरिनी पण होई शके छे. आ अंगे विशेष अध्ययन करीने आखरी निर्णय लेवो घटे (मने तो ते प्रथम दृष्टिए हरिभद्रसूरिनी ज होय तेम लागे छे.)
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