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अनुसंधान-१७. 162 __(३) प्रस्तुत 'अंक ३'मां ज ढूंकी चर्चा (पृ. २८-२९) अंतर्गत "(९) 'घउंली' ' शब्द पर भायाणी साहेबे ससार चर्चा करी छे. सौराष्ट्रना कंठाळनां शहेरोमां 'ल'ने बदले 'र' बोलातो होई त्यां, मूळभूत स्वस्तिक आकार घउं वडे (क्यारेक चोखा वती पण) बाजोठ पर (के जमीन पर) करवानी क्रियाने 'घउंली पूरवी' एम कहेवाने बदले 'घउंरी काढवी' एवो शब्द प्रयोग सांभळवा मळे छे. घउंली, 'स्वस्तिक' उपरांत तेना कोणोमां परिवर्धित भुजाओथी सर्जाता 'अक्षय स्वस्तिक' (जीवाजीवाभिगमसूत्र आदिमां आवतां 'अक्खय सोथिया')ना आकारे पण आळेखवामां आवे छे. अहीं आ खास संदर्भमां एक अन्य हैतवनी स्पष्टता करवानी जरूर छे. जैनोमां घणाकाळथी 'अक्षय स्वस्तिक'ने 'नंद्यावर्त' मानी लेवामां आव्यो छे, जे मोटो भ्रम छे. बीजी वात ए छे के सदीओथी 'नंद्यावर्त'ना उच्चार अने जोडणी (मुनिओ पण मध्ययुगथी लई आज दिवस सुधी) 'नंदावर्त' सरखो करे छे जे भूलभरेलुं छे. ___'नंद्यावर्त' ए 'अक्षय स्वस्तिक'थी जुदी ज आकृति छेआजे लगभग १५०० वर्षथी तेनी असली आकृति भुलाई गई छे. कोशकारी अनुसार तेने जलचर 'महामत्स्य' के 'अष्टपाद' (giant squid, octopus)वा 'करोळिया' के पछी 'तगर'ना कुलनी आकृति समान गणे छे. आ सौमां पाद (के पांखडीओ) वळेली होई, ते उपमानना आधारे असली नंद्यावर्तनी पीछान थई शके छे. तेनी आकृति मौर्यकालीन चलणी मुद्राओ (कार्षापण) पर . अने मथुराना शककालीन जैन आयागपट्टो पर—अने आम ईस्वीसन् पूर्वे त्रीजी सदीथी लई ईस्वीसननी पहेली सदी सुधी अंकित थयेली जोवा मळे छे. स्वस्तिक, अक्षय-स्वस्तिक, अने नंद्यावर्तनी आकृतिओ आ साथे रजू करुं छु (जुओ पृ. १६५) ते उपरथी त्रणेना देखावमां रहेढं अंतर स्पष्ट थशे. 'स्वस्तिक' अने 'नंद्यावर्त'नो समावेश अष्टमंगलोमां थाय छे. 'नंद्यावर्त'ने स्थाने शिल्पचित्रादि अंकनोमां जैनोमां 'अक्षय स्वस्तिक'नी चित्रणा ठेठ ११मी सदीथी तो थती आवी छे. जेमके कुंभारियाना शांतिनाथ जिनालय(प्रायः ईस्वी १०८२)ना गूढमंडपना द्वार उपरना अष्टमंगलपट्टमां असली नंद्यावर्तने बदले अक्षय-स्वस्तिक कोरेलो छे-जे भूल शोचनीय छे. वर्तमानमां पण जैनोमां अक्षय-स्वस्तिकने ज नंद्यावर्त तरीके कूटी मारवानी प्रवृत्ति रही
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