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अनुसन्धान ५० (२)
(१४) ३६ गुणधारक होते हुए भी अपक्व योगी मान्य नहीं होता है । पति की आज्ञा बिना मुमुक्षिणी को भी दीक्षा न दे । पति की आज्ञा से साध्वी बनाये।
(१५) कालचक्र की गति से महनीयतम संयमभार वहन करने में अक्षम होकर इस मार्ग का त्याग करेंगे । मृषोपदेश-कुशल आसुरायण द्विज वेदवाक्यों का विपरीत अर्थ कर गुरु बनेंगे । इससे श्रेष्ठ धर्म का नाश होगा।
(१६) तीर्थंकरों के अभाव में भी महादेव क्षेत्र (महाविदेह क्षेत्र) में यह द्वादशांगी अस्खलित रूप से दुरन्त कालग्लानि की निर्नाशिका बनी रहेगी । (१७) इस क्षेत्र में अन्तिम तीर्थंकर महावीर के पश्चात् २१ हजार वर्ष तक यह द्वादशांगी शनैःशनैः क्षीण होती जाएगी । अन्तिम केवली जंबू स्वामी के निर्वाण के पश्चात् कालवेग के कारण मुक्तिद्वार बन्द हो जाएगा । (१८) आगामी चौवीसी के समय पुनः शुद्धमार्ग के प्ररूपक गुरु होंगे । अतः देशवृत्तियों को ऐसे गुरु की ही उपासना करनी चाहिए ।
(१९) द्वादशांगीधारक शुद्ध-चारित्रिक गुरुओं के अभाव में पिप्पलाद आदि ऋषि श्रुतिवाक्यों के विपरीत अर्थ की प्रतिपादना करेंगे । (२०) चारित्रपरायणों के अभाव में शासन की दुर्दशा हो जाएगी ।
___(२२-२३) दैशिक एकादश प्रतिमा वहन करते हुए तपोयोग में प्रवृत्त हो और अर्हत् प्रतिमाओं की अर्चना करें ।
(२४) साधुजन वर्षा के अभाव में भी एक स्थान पर चातुर्मास करें। सांवत्सरिक प्रतिक्रमण हेतु पांच दिन तक पर्युषणा की आराधना करें । शुद्ध धर्म की आराधना करने वाले ही अर्हत् धर्म के अधिकारी होते हैं और वह ही विरजस्क होते हैं।
द्वितीय अध्याय - इसमें देव तत्त्व का वर्णन ३८ गद्य सूत्रों में है। श्रमणोपासक प्रातः सामायिक करें, दोषों के परिहार निमित्त प्रतिक्रमण करें । नित्य नैमित्तिक कार्य के पश्चात् चैत्यवन्दन करें ।
जिनपूजन की पद्धति बतलाते हुए कहा है :- चन्दनचूर्ण से पूजन कर पंच परमेष्ठियों के गुणों का चिंतन करते हुए भावस्तवना कर नमन करें । शाश्वत