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अज्ञातकर्तृक अर्हत्प्रवचनसूत्र-सविवरण
सं.-पं. शीलचन्द्रविजयगणि 'अर्हत्प्रवचन' नामे नोंधायेली प्रस्तुत-मूलसूत्र तेमज तेनुं स्वोपज्ञ विवरण धरावती-कृतिनी एकमात्र प्रति, खंभातना श्री शान्तिनाथ प्राचीन ताडपत्रीय जैन भंडारमा सचवाई छे. मुनि पुण्यविजयजी-संपादित Catalogue of palmleaf Mss. in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay-part-1मां (Gos. Baroda, 1961) पृ. 174 पर क्र. 107 तरीके नोंधायेली, 139 पत्रोनी अने ११ विभिन्न कृतिओना संग्रहरूपे ताडपत्रीय हस्तप्रतिमां १०मी कृति तरीके आ 'अर्हत्प्रवचन-पंचाध्यायात्मक' नामनी कृति छे, जे १२२ थी १३८ एटले के कुल १६ पत्रोमां पथरायेली छे प्रति अधूरी - अपूर्ण होई लेखक तथा लेखन संवत आदिनुं वर्णन प्राप्त नथी, परंतु विक्रमना तेरमा शतकना पूर्वार्धमां ते लखाई होवानुं अटकळवामां आव्युं छे. कृतिना कर्तानो नामोल्लेख नथी, अने आ रचनानी प्रति अन्यत्र क्यांय- कोई भण्डारमा होवानुं अद्यावधि जाणवामां नथी आव्यु. परंतु कोई भण्डारमां कोईक आवी संग्रहात्मक पोथीमां आनी बीजी नकल मळी आवे ते अशक्य न
गणाय.
'अर्हत्प्रवचन' ए तद्दन सरल छतां प्रगल्भ भाषामां थयेली मधुर लघु रचना छे. पांच मोयं सूत्रो छे, जेने अहीं 'अध्यायतरीके वर्णवेल छे, अने ते सूत्रोमां दर्शावेला आंक मुजबना पदार्थोनुं स्वरूपवर्णन-मात्र करती विवृति पण आमां ज छे, जे संभवतः सूत्रकारे ज रचेल जणाय छे. वाक्यो ढूंक ढूंकां छे, पद्धति सूत्रात्मक छे . थोडा अने ते पण सरल शब्दोमां जैनदर्शननी समजण आपवानो कर्तानो मजानो प्रयास छे, ए तो प्रथम दृष्टिए ज जणाई आवे.
___पांच अध्यायो पैकी प्रथममां १०, द्वितीय अने तृतीयमा २०-२० , चतुर्थमा १३ तथा पंचम अध्यायमा १८ पदार्थोनुं प्रतिपादन थयुं छे. आ पदार्थोमां केटलीकबाबतो खास ध्यानाई छे, ते आ प्रमाणे :
१.पांच अणुव्रतो (१-३) नी साथे रात्रिभोजनत्यागने पण षष्ठ अणुव्रत गणाव्यु छे; प्रचलित परंपरामां तेनो समावेश सातमा व्रतमां थयो छे. २. सामान्य पद्धतिमा पहेलां समिति, पछी गुप्ति-एम क्रम छे, ज्यारे अहीं पहेलां गुप्ति, पछी समिति (१/६-७) वर्णवेल छे.३ साधुना रजोहरण माटे 'पिच्छक' शब्द अहीं प्रयोजेल छे (१/७) सामान्यत: आ शब्द दिगम्बर परंपरामां वपराता 'मोरपिच्छ' माटे प्रयोजाय छे. ४. दशविध यतिधर्म ने माटे 'देश
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