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आ उपरांत आ संग्रहना ३७ थी ४० श्लोकोमां जैन धर्मने लगती बीजी पण अमुक बाबतोनी समज आपवामां आवी छ :
तदासनाद्यभोगश्च तीर्थे तद्वित्तयोजनम् ।
तबिम्बन्याससंस्कार उर्ध्वदेहक्रियापरा ।।४०|| प्रत्येक धर्म अने खास करीने जैन धर्म जे गुणो पर विशेष भार मूके छे, ते गुणोनी धर्ममां आवश्यकता दर्शावी छ :
यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निर्घर्षणच्छेदनतापताडनैः। तथैव धर्मो विदुषा परीक्ष्यते
श्रुतेन शीलेन तपोदयागुणैः ।।६१॥ आम आ सुभाषितसंग्रहना कर्तानो झोक जैन धर्म तरफ होवा छतां तेमणे आ संग्रहमां नीति अने धर्मने लगतां मोटाभागनां एवां सुभाषितो आप्यां छे के जे कोइ पण उन्नत जीवन जीववा इच्छनार मनुष्यने उपयोगी थइ पडे. अलबत्त केटलांक सुभाषितोमां व्यावहारिक उपदेश पण व्यक्त थाय छे तो बे-त्रण श्लोको प्रणयने लगता पण आ संग्रहमां जोवा मळे छे.
आ संग्रहमां मळतां सुभाषितोमां नीचेना विषयो पर विचारो रजू थया छे :
सज्जन मनुष्यो, चारित्र्य, सद्गुणोनी समज अने तेमनु महत्व, दुर्जननी खासियतो, कर्मना सिद्धांतनुं सरळ प्रतिपादन, सत्कर्मनुं महत्त्व, वैराग्यमूलक अभिगम अपनाववानी जरूर, जैन धर्मनु महत्त्व, सद्गुरुनां लक्षणो अने तेमनी अनिवार्यता अने संसारनी नश्वरता वगेरे.
नोंधवू घटे के आ सुभाषितो कर्ताए पोते रच्यां होय के तेमने बीजेथी लीधा होय, पण तेमने व्यवस्थित रीते रजू कर्या नथी.. दा.त. प्रणयनी भावनाने व्यक्त करता श्लोको (९, १०, ११) पछी चंद्रने लगता अन्योक्ति अलंकार दर्शावता श्लोको आवे छे (१३, १४), तेज प्रमाणे वैराग्यमूलक श्लोको (२५, २६, २७) पछी वादळने उद्देशीने लखेलो अन्योक्ति श्लोक आवे छे (२८) ने पछी सत्कर्मनुं माहात्म्य प्रतिपादन करतो श्लोक आवे छे.
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