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अने आ ज वात १२मा षोडशकनी सोळमी आर्यामां वधु स्पष्ट रीते मळे छे :
'व्याध्यभिभूतो यद्वन्निविण्णस्तेन तक्रियां यत्नात् ।
सम्यक्करोति तद्वद् दीक्षित इह साधुसच्चेष्टाम् ।।२३ २. 'पञ्चसूत्र' ना चोथा सूत्रमा आवतो एक वाक्यसमूह आवो छ :
'से समले?कंचणे समसत्तुमिते नियत्तग्गहदुक्खे पसमसुहसमेए सम्मं सिक्खमाइयइ, गुस्कुलवासी, गुस्पडिबद्धे, विणीए, भूयत्थदरिसी, नइओ हियतरं ति मन्नइ, सुस्सूसाइगुणजुत्ते तत्ताभिनिवेसा विहिपरे परममंते त्ति अहिज्जइ सुत्तं'।।२४
___ आ वाक्योनो ज भावार्थ धरावती अने अंशतः शाब्दिक साम्यवाळी, बारमी विशिकानी गाथाओ आ प्रमाणे छे :
'इत्थ वि होदइगसुहं तत्तो एवोपसमसुहं ॥४॥ सिक्खादुगंमि पीई जह जायइ हंदि समणसीहस्स । तह चक्कवट्टिणो वि हु नियमेण न जाउ नियकिच्चे ॥५॥ गिण्हइ विहिणा सुत्तं भावेण परममंतख्व त्ति ॥५
३. चोथा सूत्रमा ज 'आयओ गुस्बहुमाणो अवंझकारणत्तेण । अओ परमगुस्संजोगो । तओ सिद्धी असंसयं ।२६ एवो पाठ छे, तेनी साथे संपूर्ण साम्य धरावती बीजा षोडशकनी आ कारिका जुओ :
गुरुपारतन्त्र्यमेव च तद्बहुमानात् सदाशयानुगतम् ।
परमगुरुप्राप्तेरिह बीजं तस्माच्च मोक्ष इति ॥१०॥२७ खूबी तो अहीं ए छे के 'पञ्चसूत्र' ना पाठमां आवता 'अवंझकारणत्तेण' पदनो अर्थ, तेनी टीकामां 'मोक्षं प्रत्यप्रतिबद्धसामर्थ्यहेतुत्वेन' एवो कर्यो छे, अने षोडशक ना पद्यमा रहेला 'सदाशयानुगतं' पदनो अर्थ पण, तेना टीकाकारोए 'सदाशयः संसारक्षयहेतुर्गुरुयं ममेत्येवंभूतः कुशलपरिणामस्तेनानुग"तं गुस्यारतन्त्र्यं'२९ एवो ज को छे. आथी आ बन्ने अलग ग्रंथोना पाठोनुं शाब्दिक ज नहि, आर्थिक साम्य पण छतुं थाय छे.
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