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तात्पर्य एवं छे के उक्त परिस्थितिमां गमे त्यारे पतिने युद्ध करवा जवुं पडे अने युद्धमां ते खपी जाय.
तख्तदान रोहडिया संपादित 'दुहो दशमो वेद' ए परंपरागत तेम ज वर्तमानमां रचायेल दुहाओना संग्रहमां क्रमांक ३२ तरीके आपेलो नीचेनो दुहो उपर्युक्त दोहा साथै सरखाववा जेवो छे :
अरि नेडा पियु बंकडो, सायधण हे कुळ- शुद्ध । हालो नणदी हेळवा, (हवे ) अजैया कुंवर दूध ॥
अर्थ : शत्रु निकटमां छे, पियु बंको पराक्रमी छे। अने हुं तेनी प्रिया शुद्ध कुळनी छु । हे नणंद, चालो आपणे कुंवरने बकरीना दूधथी हेळवीए' ।
तात्पर्य एवं छे के पति रणमां खपी जशे पोते ऊंचा कुळनी होवाथी पाछळ सती थशे । एटले पछी बाळ कुंवरने बकरीनुं दूध पाईने उछेरवो पडशे । तो तेने अत्यारथी ज एनो हेवायो करी दईए, जेथी पाछळथी तेने ए अरुचिकर लागे
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जूना दोहामा नायिकानो डर व्यक्त थयो छे, तेने, बदले अहीं ए भावी निश्चित होवानुं अने एवी परिस्थिति पहोंची वळवा अत्यारथी तैयारी करवानुं नायिकाना वचनो व्यक्त करे छे । आ अर्वाचीन रूपान्तरमां जे उद्दीपन विभाव कविए योज्यो छे, ते वास्तविक परिस्थितिने तादृश करीने नायकनी वीरता ऊंडा मर्मथी ध्वनित करे छे ।
बीजां पण बे दोहानां रूपांतर ए ज पुस्तकमांथी नीचे आपुं हुं :
(१)
घाइ विलग्गी ऊंगडी, सिरु ल्हसिउ खंधर |
तो - वि कटाइ हत्थउउ, बलि किज्जउं कंतस्सु (४४५, ३)
आंतरडुं पगे वळग्युं छे, शिर स्कंध पर ढळी पड्युं छे, पण तो ये हाथ कटारी उपर ज छे : आवा कंथ पर हुं बलिदान रूपे अपाउं छं (= वारी जाउं छं' । )
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