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अनुसन्धान-५९
ग्रन्थनी व्याख्या लखती वखते तेमां तेमना विरुद्ध पोतानो युगपत्पक्ष कोईक रीते स्थाप्यो होय ?"
परन्तु पण्डितजीनी आ वात वाजबी जणाती नथी. कारण के श्रीसिद्धसेनाचार्यना अभेदवादथी विरुद्ध युगपद्वादनी स्थापना मल्लवादीजी श्रीसिद्धसेनाचार्यना ज ग्रन्थनी टीकामां न करे ओम समजी, मल्लवादीना त्रीजा कोईक ग्रन्थनी कल्पना करवी ते करतां, मल्लवादीजीओ दिवाकरजीने युगपद्वादी ज समजी तेमना ज युगपद्वादनी प्ररूपणा सन्मतिटीकामां करी हशे ओम मानवू वधारे उचित लागे छे. अने आ मान्यताने समर्थन आपतो अेक पुरावो पण आपणने, श्रीअभयदेवसूरिजी कृत सन्मतिटीकामां सांपडे छे.
श्रीअभयदेवसूरिजीओ सन्मति० - २.१४नी टीकामां, ओ गाथानो युगपद्वादी केवो अर्थ करता हता ते जणाव्युं छे - "युगपदुपयोगद्वयवादी 'अनन्तं दर्शनं प्रज्ञप्त'मित्यस्यां प्रतिज्ञायां 'साकारग्गहणाहि य णियमऽपरित्तं' इत्यकारप्रश्लेषात् ... हेतुमभिधत्ते ।" आ उल्लेख परथी स्पष्ट छे के सन्मतितर्कनी युगपद्वादी द्वारा करवामां आवेली कोईक टीका श्रीअभयदेवसूरिजी सामे मोजूद हती. आ टीका बहु ज सम्भव छे के मल्लवादीजीनी ज हती. कारण के ओक तो श्रीअभयदेवसूरिजी गाथा २.१०नी टीकामां मल्लवादीजीने ज युगपद्वादी तरीके ओळखावे छे, अने बीजुं ओ के श्रीअभयदेवसूरिजीथी पूर्वे मल्लवादी सिवाय कोईओ सन्मतितर्क पर टीका लख्यानो उल्लेख जाणवामां नथी. सम्भवित छे के प्रस्तुत युगपद्वादपरक व्याख्याने लीधे ज मल्लवादीजीने श्रीअभयदेवसूरिजीओ युगपद्वादी गणी लीधा होय.
हवे, जो मल्लवादीजीओ सन्मतितर्कनी प्रस्तुत विषयने सम्बन्धित गाथाओनी व्याख्या युगपद्वादपरक करी होय, तो स्वाभाविक रीते समजी शकाय के तेओ दिवाकरजीने युगपद्वादी ज समजता हशे. दिवाकरजीना मन्तव्य विशेनां उपलब्ध साक्ष्योमां मल्लवादीजीनो अभिप्राय ज सौथी प्राचीन छे, अने ओ अभिप्राय श्रीसिद्धसेनाचार्य युगपद्वादी हता ओ वातनी तरफदारी करे छे. ओ दृष्टिले 'सिद्धसेन दिवाकरजी युगपद्वादना स्थापक हता' ओ मत, दिवाकरजी अभेदवादी होवाना मत सामे वधु सबल बने छे. अत्रे ज्ञातव्य छे के श्रीअभयदेवसूरिजीथी पूर्वे कोई दिवाकरजीने अभेदवादी गण्या होवानो