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जून - २०१२
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स्वसम्मत अभेदवादनी स्थापना करी छे. माटे दिवाकरजीनो पोतानो पक्ष तो अभेदवाद ज छे, परन्तु ओक हद सुधी युगपवाद स्वीकारता होवाथी श्रीनन्दिसूत्रना टीकाकारे तेमने युगपद्वादी गण्या छे.)
__ आ समाधान अटले विचारणीय जणाय छे के जो श्रीहरिभद्रसूरिजी दिवाकरजीने वास्तवमां अभेदवादना ज स्थापक समजता होत तो, अभ्युपगमवादना अभिप्रायथी पण युगपद्वादी तरीके श्रीसिद्धसेनाचार्यनो उल्लेख कर्या पछी, अभेदवादना स्थापक तरीके वृद्धाचार्यने न ज जणावत. केम के तेम करवाथी तो ओ निर्णीत ज थई जाय के अभेदवाद श्रीसिद्धसेनाचार्यनो तो नथी ज.१७
वास्तवमा विशेषावश्यकभाष्य के विशेष-णवतिमां वादोना पुरस्कर्ताओनां नाम न होवा छतां, ओ ग्रन्थोने आधारे ज केवलज्ञान-दर्शननी चर्चा करती वखते श्रीहरिभद्रसूरिजी वादपुरस्कर्ताओनां नाम सौप्रथम वखत उल्लेखे छे, त्यारे ओ नक्की छे के तेओनी आ प्ररूपणा निराधार तो न ज होय. तेओनी पासे आ माटे कोई प्रबल श्रुतपरम्परा के गुरुपरम्परा होवी ज जोईओ. अने अमां पण ज्यारे श्रीमलयगिरिजी पण स्वकीय नन्दीटीकामां त्रणे वादोना पोषक तरीके हरिभद्रसूरिजीओ जणावेला आचार्योने ज उल्लेखे छे, त्यारे 'दिवाकरजी युगपद्वादी हता, अभेदवादी नहीं' ओ मत पुरुषप्रामाण्यनी रीते अत्यन्त सबल बनी जाय छे.
*श्रीअभयदेवसूरिजीओ मल्लवादीजीने युगपद्वादी गणाव्या छे ते पण आ सन्दर्भे विचारणीय बने छे. मल्लवादीजीना बे ग्रन्थो इतिहासनां पाने नोंधायेल छे : १. द्वादशारनयचक्र २. सन्मतिटीका. हवे पण्डित सुखलालजीओ ज्ञानबिन्दुपरिशीलनमा जणाव्या मुजब द्वादशारनयचक्रमां तो केवलज्ञान-दर्शन सम्बन्धे कोई चर्चा ज नथी. तेथी तेओनी युगपद्वाद-प्ररूपणा अंगे बे ज विकल्पो संभवे छे : १. मल्लवादीओ युगपद्वादनो स्थापक त्रीजो ज ग्रन्थ रच्यो होय के जेनो उल्लेख अत्यारे आपणी पासे नथी. २. सन्मतिटीका के जे अत्यारे अनुपलब्ध छे, तेमां तेओओ युगपद्वाद प्ररूप्यो होय. आमांथी प्रथम विकल्प स्वीकारीने बीजा विकल्पने अमान्य करतां पण्डित सुखलालजी ज्ञानबिन्दु-परिशीलनमा जणावे छे के "ज्यारे मल्लवादी अभेदसमर्थक दिवाकरना ग्रन्थ पर टीका लखे त्यारे ओ केवी रीते मानी शकाय के तेमणे दिवाकरना